खुद को कैंसर होने की बात पता चलने के लिए
कैंसर होने का पता चलना, जीवन को बदलने वाली घटना हो सकती है। कैंसर होने का पता चलने के बाद, व्यक्ति बहुत सारे मनोविकारों और भावनाओं से गुजर सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, कैंसर पीड़ितों की प्रतिक्रिया अलग-अलग हो सकती है, लेकिन कुछ ऐसी सामान्य बातें हैं, जो ज्यादातर लोग अनुभव करते हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि ये मनोविकार और भावनाएं पूरी तरह से सामान्य होती हैं और कैंसर मरीज के जीवन में ऐसे तनावपूर्ण समय व परिस्थिति के लिए स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती हैं।
जब पहली बार पता चलता है कि हमें कैंसर हो गया है, तो इस स्थिति से निपटना कठिन हो सकता है। चाहें, डॉक्टर अपने क्लिनिक में या अस्पताल में यह बात बताए या कहीं बाहर किसी दोस्त या संबंधी द्वारा इस बात की सूचना मिले, तो पहली प्रतिक्रिया यही हो सकती है कि हमें सदमा पहुंच सकता है और हम अविश्वास की भावना से परेशान हो सकते हैं। यह बात सुनकर शरीर का सुन्न पड़ना या कुछ भी न कह पाना भी एक बहुत ही सामान्य प्रतिक्रिया, लोगों में देखने को मिलती है। इस खबर को पूरी तरह से आत्मसात करने और जो कहा गया, उसे समझने में कुछ समय लग सकता है क्योंकि दिल व दिमाग इस बात को मानने को तैयार ही नहीं होते। जांच के बाद, कैंसर होने की बात बताने वाला डॉक्टर अक्सर कैंसर के प्रभावों और इसके संभावित उपचारों के बारे में बताना शुरू रखते हैं, लेकिन सुनने वाले का दिमाग अभी भी जो शुरू में कहा गया यानी कैंसर होने की सूचना दी गई, उसी में अटका रहता है और वह डॉक्टर की बाकी बातों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाता या डॉक्टर द्वारा कही जा रही किसी भी बात को समझने में समर्थ नहीं होता। ऐसी खबर मिलने पर, “मैं अब कब तक जिंदा रह पाऊंगा”, “क्या इसका कोई इलाज है”, “क्या मेरे घर-परिवार, दोस्त, रिस्तेदारों आदि को यह बात पता है”, “क्या, मैं मरने वाला हूं” इत्यादि प्रश्न मन में आते हैं। यह भारतीय सेटिंग (ऐसी मरीज की स्थिति) में असामान्य बात नहीं है कि मरीज को कैंसर होने की बात न बताई जाए तथा साथ ही उसके साथ आए, उसके संबंधियों को यह बात समझाई न जाए। यह मरीज के लिए काफी परेशान करने वाली बात हो सकती है, अगर उसे इस बारे में बताया न जाए, क्योंकि हर कोई उसी के बारे में बात कर रहा होता है, जबकि उसे इस बात का पता नहीं होता या उसके साथ जो हो रहा है, उसके बारे में उसे बताया गया नहीं होता।
कैंसर होने का पता चलने के बाद, कुछ लोग इस बात पर विश्वास न करने की स्थिति में चले जाते हैं, और वे पूरी तरह से या थोड़ी-बहुत इस बात को मानने को तैयार ही नहीं होते और इस तथ्य को झुठलाने की कोशिश करते हैं। यह भावना केवल मरीज में ही नहीं, बल्कि उसके संबंधियों और दोस्तों में भी हो सकती है। ज्यादातर मरीजों में न मानने की स्थिति लंबे समय तक नहीं रहती और वे बाद में, इस बात को समझ जाते हैं और इसे स्वीकार कर लेते हैं। पर कुछ मरीज तो लगातार इस बात को न मानने से इंकार करते रहते हैं, जिसके चलते उनका उपचार नहीं किया जा सकता। अगर मरीज के संबंधी और दोस्त भी इस बात को मानने को तैयार नहीं होते कि उसके संबंधी या दोस्त को कैंसर हुआ है, तो स्थिति और भी कठिन होने लगती है और ऐसे में उन्हें समझाना मुश्किल होता है, क्योंकि डॉक्टर की बात, वे मानने को तैयार नहीं होते और जिसके चलते वे उपचार में सहयोग के लिए तैयार नहीं होते।
जब जांच आदि से कैंसर होने की पुष्टि हो जाती है और मरीज को कैंसर होने की बात बताई है, तो आमतौर पर वह गुस्सा करता है। यह गुस्सा कभी भी हो सकता है, लेकिन आमतौर पर इसे इनकार करने की अवधि के बाद देखा जाता है। मरीज का यह गुस्सा परिवार के लोगों, दोस्तों, चिकित्सा से जुड़े लोगों, कर्मचारी या किसी और के प्रति हो सकता है। क्रोध में आमतौर पर दिमाग में बार-बार एक ही बात आती है कि “मुझे ही क्यों”, और इस प्रकार से मरीज को लगता है कि यह रोग उसे ही क्यों हुआ, दूसरों को क्यों नहीं। कैंसर का पता चलने के बाद, होने वाले क्रोध के अलावा, अगर मरीज को लगता है कि कैंसर का पता लगाने में देरी हुई है या किसी अन्य कारणों से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, तो इन बातों पर भी उसे गुस्सा आ सकता है।
आम तौर पर, कैंसर होने का पता चल जाने के बाद, भय, चिंता और घबराहट जैसी भावनाएं पनपती हैं। वैसे, ऐसी स्थिति में इन भावों का आना काफी स्वाभाविक है। कैंसर मरीजों में ऐसी भावनाओं का मुकाबला करना, अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग हो सकता है, लेकिन ज्यादातर मरीज अपने संबंधियों और दोस्तों के साथ इन भावनाओं को साझा करते हैं, जिससे उन्हें थोड़ा आराम मिलता है तथा साथ ही इलाज करने वाला डॉक्टर, ऐसी स्थिति से निकलने में मरीज की बराबर मदद कर सकता है। रोग की इस स्थिति के सभी तथ्यों को जानने के बाद, किए जाने वाले इलाज और उससे होने वाले परिणामों के चलते, ऐसी कुछ भावनाओं और आशंकाओं को दूर किया जा सकता है, जबकि कुछ मरीजों में, क्या होगा, इस बारे में नकारात्मक सोचने से उनकी आशंकाएं और चिंताएं और बढ़ सकती हैं। दूसरी ओर, कुछ ऐसे मरीज भी हो सकते हैं, जो ऐसी स्थिति का बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं, यदि वे इलाज के होने वाले परिणामों के बारे में बहुत कम जानते हैं, तो भी।
मरीज के साथ जो हो रहा है, उसे समझने तथा स्वीकार करने में उसे थोड़ा समय लग सकता है। कुछ मरीज कैंसर होने के कारणों को लेकर या ऐसी स्थिति में उनके संबंधियों को होने वाली परेशानी या उन पर पड़ने वाले बोझ को लेकर परेशान हो उठते हैं और अपराध बोध महसूस करते हैं। यह भी एक सामान्य भावना ही है, जिसे कोई भी अनुभव कर सकता है।
आशा एक आम भावना है, जो मरीजों में, इस स्थिति को स्वीकार करने पर आती है। इस बात को समझना कि कैंसर भी अन्य रोगों की तरह ही है और आज के समय में, सभी प्रकार के कैंसरों के लिए इलाज उपलब्ध है तथा ऐसी स्थिति से निपटने के लिए बराबर अच्छे-अच्छे नए इलाज आते जा रहे हैं, जिससे कैंसर के नियंत्रण के साथ ही मरीज ठीक भी हो रहे हैं।