न्यूट्रोपेनिक बुखार (ज्वर) और सेप्सिस
न्यूट्रोपेनिक सेप्सिस
न्युट्रोपेनिया एक पद है, जिसका उपयोग रक्त (खून) में न्युट्रोफिल की संख्या सामान्य से कम होने पर किया जाता है। रक्त में विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं, जिन्हें लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ और प्लेटलेट्स कहते हैं। श्वेत रक्त कोशिकाएं कई प्रकार की हो सकती हैं, जिनमें से एक न्यूट्रोफिल है। न्यूट्रोफिल का कार्य संक्रमण के खिलाफ शरीर की रक्षा करना है।
जब कीमोथेरेपी, जैविक चिकित्सा या इम्यूनोथेरेपी जैसी दवाएं मरीज को दी जाती हैं, तो इनका रक्त गणना (ब्लड काउंट) पर प्रभाव पड़ता है जिससे ये कम होने लगते हैं। ये कमी न्यूट्रोफिल, प्लेटलेट्स और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में भी हो सकती है। इन कोशिकाओं के कम होने का जोखिम कैंसर के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाओं के प्रकार पर निर्भर करेगा।
न्यूट्रोफिल का कार्य संक्रमण से बचाव करना है। जब इनकी गणना (काउंट) कम हो जाती है, तो मरीज में संक्रमण होने का खतरा अधिक हो जाता है। यदि मरीज में इस समय संक्रमण होता है, तो शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम होने लगती है, जिसके चलते संक्रमण जल्दी ही गंभीर हो सकता है तथा मरीज सेप्टिक हो सकता है। इस स्थिति को न्यूट्रोपेनिक सेप्सिस कहा जाता है। यदि मरीज को न्यूट्रोपेनिया और बुखार है, लेकिन सेप्सिस नहीं है, तो इसे न्यूट्रोपेनिक बुखार (ज्वर) के रूप में जाना जाता है। यह स्थिति सेप्सिस की तरह गंभीर नहीं है लेकिन फिर भी इसे सेप्सिस में बदलने से रोकने के लिए तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है।
न्यूट्रोपेनिक सेप्सिस के लक्षण
न्युट्रोपेनिक सेप्सिस के कई लक्षण हो सकते हैं, जिनमें 99 डिग्री से अधिक शरीर का तापमान बढ़ जाना, अस्वस्थ महसूस करना, सामान्य से अधिक थकान होना, बेहोशी महसूस करना, निम्न रक्तचाप, हृदय गति का बढ़ना, खांसी के साथ बुखार, दस्त होना आदि शामिल हो सकते हैं।
मरीज को क्या करना चाहिए?
यदि किसी मरीज का कैंसर का इलाज चल रहा है खासकर कीमोथेरेपी, जैविक या इम्यूनोथेरेपी के द्वारा तथा उसमें 99 डिग्री से अधिक तापमान के लक्षण हैं या वह बहुत अस्वस्थ महसूस हो रहा है, तो उसे तुरंत अपने डॉक्टर की सहायता लेनी चाहिए। डॉक्टर आमतौर पर, रक्त कोशिकाओं के स्तर जैसे कि न्यूट्रोफिल की संख्या जानने के लिए मरीज को तत्काल रक्त परीक्षण कराने की सलाह देते हैं। यह परीक्षण तुरंत किया जाना चाहिए तथा इसमें तनिक देरी नहीं होनी चाहिए। यदि रक्त कोशिकाओं की गिनती सामान्य है तो चिंता की कोई आवश्यकता नहीं लेकिन यदि वे कम हैं, तो मरीज को नसों में एंटीबायोटिक दवाएं देने की जरुरत होती है। यदि मरीज को न्युट्रोपेनिक सेप्सिस है, और जान जाने का खतरा है, तो इंट्रावेनस एंटीबायोटिक दवाओं को शीघ्र उपचार एवं संक्रमण को रोकने के लिए देना अधिक महत्वपूर्ण होता है।
उपचार/इलाज
जैसा कि ऊपर कहा गया है, उपचार के लिए अंतःशिराओं में एंटीबायोटिक्स संक्रमण ठीक होने तक तथा न्युट्रोफिल की गिनती सामान्य स्तर तक बढ़ जाने तक दिया जाता है। कुछ मरीजों में, जहां न्युट्रोपेनिया गंभीर नहीं है, उनमें खाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का बाहरी मरीज के आधार पर इस्तेमाल किया जा सकता है। यह उपचार का निर्णय ऑन्कोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। कभी-कभी मरीज के अधिक अस्वस्थ होने पर गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में उपचार की आवश्यकता हो सकती है। श्वेत कोशिका की संख्या बढ़ाने के लिए जी-सीएसएफ (G–CSF) नामक इंजेक्शन भी स्थिति के आधार पर दिए जा सकते हैं। कुछ मरीजों में न्यूट्रोपेनिक सेप्सिस के जोखिम को कम करने के लिए, कीमोथेरेपी के हर कोर्स के साथ ये इंजेक्शन दिए जा सकते हैं।