Bladder Cancer

यूरिनरी ब्लैडर कैंसर

मूत्राशय (यूरिनरी ब्लेडर)

ब्लैडर या यूरिनरी ब्लैडर एक मांसपेशियों की बनी बैग जैसी बनावट होती है जो कि पेल्विस कहे जानेवाले पेट के निचले हिस्से में स्थित होता है। इसका कार्य किडनी से प्राप्त होने वाले पेशाब को एकत्रित और संग्रहीत करना होता है। ब्लैडर मूत्र-नलियों द्वारा किडनियों से जुड़ा होता है जो कि एक ब्लैडर एक किडनी से जुड़ा होता है।

दूसरी तरफ ब्लैडर मूत्रमार्ग के माध्यम से बाहर की ओर जुड़ा होता है।

ब्लैडर में चार परतें होती हैं। एकदम भीतरी परत को म्यूकोसा या म्यूकोसल परत कहते हैं। भीतर से बाहर की ओर वाली अन्य परतें सबम्यूकोसा, मसल परत और सिरोसल परत कहते हैं।

यूरिनरी ब्लैडर कैंसर

ब्लैडर कैंसर ब्लैडर से शुरू होता है। यह कैंसर म्यूकोसल परत में प्रारम्भ होता है और ब्लैडर की अन्य परतों में फैल जाता है। ब्लैडर कैंसर मुख्यतया ट्रांजिशनल कोशिका कार्सिनोमा (TCC ) टाइप होता है जो कि सबसे अधिक कॉमन है और यह ट्रांजिशनल कोशिकाओं से विकसित होता है जो म्यूकोसा निर्मित करता है। ब्लैडर कैंसर के अन्य प्रकार हैं: स्क्वेमस कोशिका कार्सिनोमा, अडेनोकार्सिनोमा और छोटी कोशिका कार्सिनोमा कभी कभी होते हैं।

निदान के समय इसकी विशिष्टताओं पर आधार रखते हुये TCC को पैपिलरी (प्रारम्भिक रूप), CIS (कार्सिनोमा इन सीटू), और मांसपेशियों पर हमला करनेवाला (जिसमें मांसपेशी परत भी शामिल है) माना जाता है।

ग्लोबोकन डेटा 2018 के अनुसार 18926 ब्लैडर कैंसर हुये, जो कि कैंसर का 1.6% था।

ब्लैडर कैंसर से जुड़े कई जोखिम कारक होते हैं।

धूम्रपान

ब्लैडर कैंसर होने का खतरा धूम्रपान से है। यह सिगरेट से लेकर हुक्का पीने तक के किसी भी धूम्रपान से हो सकता है। धुएँ के माध्यम से जो रसायन श्वास के द्वारा भीतर जाते हैं वे खून में अवशोषित हो जाते हैं और किडनियों द्वारा ब्लैडर में पहुंचाए जाते हैं। ये रसायन ब्लैडर की कोशिकाओं की लाइनिंग क्षति पहुंचाते हैं जिसके कारण कैंसर होता है। धूम्रपान की अवधि और गहनता पर जोखिम निर्भर करता है। धूम्रपान बंद कर देने से ब्लैडर कैंसर का खतरा कम हो जाता है।

रसायन

कुछ व्यवसायों में रासायनिक पदार्थों के अवशोषण से ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
इन व्यवसायों में चर्म उद्योग, पेंटर, धातु उद्योग, रबर उद्योग, इलेक्ट्रिशियन, खदानों और प्लास्टिक उद्योग में काम करनेवाले शामिल हैं। रसायन का संसर्ग और कैंसर होने के बीच की प्रच्छ्न्न अवधि बहुत ही अधिक होती है जो 20 वर्ष और उससे भी अधिक हो सकती है। बहुत सारे कैंसर करने वाले रसायनों पर प्रतिबंध लगाया गया है और इनका उपयोग इन उद्योगों में नहीं किया जाता है।

पीने का पानी

पीने के पानी में क्लोरीन होना भी ब्लैडर कैंसर का जोखिम कारक हो सकता है। कुछ अध्ययनों द्वारा यह दर्शाया गया है कि लम्बे समय तक क्लोरीन वाला पानी पीने से ब्लैडर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

बहुत पुराना संक्रमण

जिन लोगों में बार बार ब्लैडर का इन्फेक्शन होता है और बहुत लम्बे समय से मूत्र नली (कैथीटर) लगाए जाने से या ब्लैडर में पथरी के कारण नियमित रूप से संताप के कारण भी ब्लैडर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है विशेष रूप से स्क्वेमस कोशिका कैंसर।

आयु और लिंग

ब्लैडर कैंसर युवाओं की तुलना में प्रौढ़ व्यक्तियों में कॉमन है और महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक होता है।

पारिवारिक इतिहास

ब्लैडर कैंसर होने का खतरा थोड़ा सा तब बढ़ जाता है जब किसी निकट के रिश्तेदार को यह हुआ हो।

कैंसर के स्टेज से तात्पर्य है शरीर में कैंसर किस भाग में हुआ है और इसकी साइज़ कितनी है।कैंसर के स्टेज का पता लगने पर डॉक्टर को सर्वाधिक उचित उपचार करने में सहायक मिलती है। ब्लैडर कैंसर का स्टेज TNM स्टेजिंग प्रणाली या नंबर प्रणाली पर आधारित होता है।

इनमें से किसी एक प्रणाली द्वारा स्टेज निर्धारण करना ब्लैडर में ट्यूमर के बढ़ने, ब्लैडर में उस स्थान पर और लिम्फ़ ग्रंथियो में कैंसर का फैलाव और शरीर के अन्य भागों में कैंसर के फैलने पर निर्भर करता है।

TNM स्टेजिंग

TNM का पूरा रूप है ट्यूमर नोड और मेटस्टेसिस

T स्टेजिंग

टा(Ta) नॉन-इंवेसिव पैपिल्लरी ट्यूमर (ट्यूमर म्यूकोसा से गहरी परतों पर आक्रमण नहीं करता)। ये ट्यूमर एक्सोफाइटिक होते हैं (बाहर की ओर बढ़ते हैं)
टिस(Tis कार्सिनोमा इन सीटू ट्यूमर सपाट होता है और म्यूकोसा में होता है लेकिन यह ब्लैडर की भीतरी परतों में नहीं होता।
T1 ट्यूमर में म्यूकोसल परत के नीचे जुडने वाले ऊतक (टिशू) होते हैं।
T2 ट्यूमर जुडनेवाले ऊतकों से आगे फैलते हैं और इनमें ब्लैडर की मांसपेशी की परत भी शामिल होती है। T2 को दो भागों में बांटा जाता है: T2a यह तब होता है जब मांसपेशी का आधा भीतरी भाग इससे ग्रस्त होता है और T2b जब मांसपेशी का आधा बाहरी भाग इससे ग्रस्त होता है।
T3 इस ट्यूमर में ब्लैडर के बाहर चर्बी की परत होती है। इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है: एक T3a जब इसे माइक्रोस्कोप के द्वारा देखा जाता है और T3b जब इसे आँखों से देखा जाता है।
T4 ट्यूमर में ब्लैडर के बाहर के अन्य भाग शामिल होते हैं। यह T4a होता है जब इसमें पुरस्थ ग्रंथि (प्रोस्टेट), गर्भाशय अथवा योनि शामिल हों और यह T4b है जब इसमें पेट या पेल्विस की भित्ति शामिल हो।

Ta और Tis नॉन-इंवेसिव ट्यूमर हैं और T1 से T4 इंवेसिव कैंसर हैं।

N स्टेजिंग

N0 लिम्फ़ ग्रंथियां ब्लैडर कैंसर का शिकार नहीं होती
N1 पेल्विस में एक एकल लिम्फ़ ग्रंथि का ब्लैडर कैंसर का शिकार होना
N2 पेल्विस में कई लिम्फ़ ग्रंथियों में ब्लैडर कैंसर होना
N3 कॉमन अंतड़ियों की लिम्फ़ ग्रंथियों में ब्लैडर कैंसर होना

M स्टेजिंग

M0 उपरोल्लिखित के अलावा अन्य भागों में ब्लैडर कैंसर नहीं फैलना
M1 उपरोल्लिखित के अलावा शरीर के अन्य भागों में कैंसर का फैलाव

ब्लैडर कैंसर की ग्रेडिंग

Ta कैन्सरों को उनके बढ़ने और फैलने की क्षमता के आधार पर निम्न श्रेणी और उच्च श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है। Tis कैन्सर को सामान्यतया उच्च श्रेणी में रखा जाता है। कैंसर की श्रेणी के आधार पर उपचार के अलग अलग विकल्प उपलब्ध हैं।

इंवेसिव कैन्सरों को ग्रेड 1 से ग्रेड 3 में श्रेणीकृत किया जाता है। ग्रेड 1 का कैंसर बहुत ही कम आक्रामक होता है और ग्रेड 3 का कैंसर बहुत अधिक। अधिक आक्रामक होने से तात्पर्य है कैंसर की बढ़ने और फैलने की बहुत अधिक क्षमता होना जिससे इसका उपचार भी बहुत ही कारगर होना चाहिए।

ब्लैडर कैंसर निम्न तरीकों से ज्ञात होते हैं।

पेशाब में खून आना

ब्लैडर कैंसर का एक कॉमन लक्षण पेशाब में खून आना (haematuria) है। कई बार खून आने में दर्द नहीं होता। जब खून आता है तो इसका रंग लाल, गुलाबी या भूरा होता है। यदि पेशाब में खून दिखाई दे तो डॉक्टर से मिलने की सलाह दी जाती है। खून निरंतर आता रहता है या रुक रुक कर आता है। कभी कभी खून दिखाई नहीं देता लेकिन जब अन्य लक्षण दिखाई दें तो इसे माइक्रोस्कोप से जांच करने पर मालूम किया जा सकता है।

अन्य लक्षण

बार बार पेशाब आना, पेशाब करते समय दर्द होना या जलन होना, पेशाब करने में तकलीफ होना या तुरंत पेशाब जाने की आवश्यकता जैसे यूरिनरी लक्षण ब्लैडर कैंसर में दिखाई देते हैं। पेट के निचले भाग में दर्द, थकान, भूख न लगना, वजन कम हो जाना जैसे लक्षण भी ब्लैडर कैंसर के एडवांस्ड स्टेज में होना दर्शाते हैं।

यह जानना आवश्यक है कि उपर्युक्त सभी लक्षण अन्य कारणों जैसे ब्लैडर पथरी, संक्रमण अथवा पुरस्थ ग्रंथि (प्रोस्टेट) के बढ़ने से भी दिखाई देते हैं। अतः इन लक्षणों से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि कैंसर हुआ है लेकिन यदि ये लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से जरूर मिल लेना चाहिए।

जब ब्लैडर कैंसर की आशंका होती है तो निम्नलिखित टेस्ट किए जाने चाहिए ।

फ्लेक्सिबल साइस्टोस्कोपी

यह टेस्ट सामान्यतया यूरोलोजिस्ट द्वारा किया जाता है। इस टेस्ट में कैमरा और लाइट वाली एक पतली नली (सिस्टोस्कोप) मूत्रनली के मार्ग से ब्लैडर में डाली जाती है। यह टेस्ट करने वाला व्यक्ति ब्लैडर के भीतर यदि कोई असामान्यता हो तो उसे देख सकता है। यह प्रक्रिया लोकल या जनरल एनेस्थेसीया के द्वारा की जा सकती है। यदि डॉक्टर को ट्यूमर होने का पता लगता है तो किसी असामान्य भाग की बायोप्सी की जा सकती है। कुछ केन्द्रों में ब्लू लाइट साइटोस्कोपी की जाती है जिससे अधिक आसानी से असामान्य भागों का पता लगाया जा सकता है। इस प्रक्रिया के बाद मरीज उसी दिन घर भी जा सकता है। इस प्रक्रिया के साइड इफेक्ट के तौर पर हल्की सी जलन और चुभन महसूस होती है।

खून की जांच

मरीज के सामान्य स्वास्थ्य की जांच के लिए कुछ रूटीन प्रकार की खून की जांच की जाती है।

पेशाब की जांच

पेशाब में कैंसर की कोशिकाएं होने की जांच के लिए रूटीन पेशाब टेस्ट किए जाते हैं।

अल्ट्रासाउंड स्कैन

ब्लैडर अथवा यूरिनरी ट्रैक्ट का अल्ट्रासाउंड स्कैन ब्लैडर या मूत्राशय के किसी अन्य भाग में किसी असामान्यता को देखने के लिए किया जाता है। सही चित्र लेने के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन में ध्वनि तरंगों का प्रयोग किया जाता है। जिस भाग की जांच की जानी होती है वहाँ थोड़ा सी जेली लगाकर उसका चित्र लेने के लिए सलाई को त्वचा पर रगड़ा जाता है। इस टेस्ट के पहले ब्लैडर को पूरी तरह से भरने के लिए पानी पीने के लिए कहा जाता है। इसमें बहुत कम समय लगता है और दर्द भी नहीं होता।

सीटी स्कैन अथवा सीटी यूरोग्राम

सीटी स्कैन या कंप्युटेड टोमोग्राफिक स्कैन कैंसर के निदान और उसका स्टेज मालूम करने के लिए सामान्यतया किया जानेवाला टेस्ट है। सीटी स्कैन में एक्सरे लिया जाता है ताकि शरीर के भीतर के अंगों का चित्र लिया जा सके। सीटी यूरोग्राम एक सीटी स्कैन है जिसे यूरिनरी ट्रेक्ट में असामान्यता का पता लगाने के लिए किया जाता है। एक बार कैंसर का निदान कर लेने के बाद कैंसर का स्टेज जानने के लिए सीटी स्कैन किया जाता है। इस स्कैन में दर्द नहीं होता और इसमें 10-20 मिनट का समय लगता है। स्कैन के पहले एक डाई घुसाई जाती है ताकि बेहतर चित्र मिल सके।

पीईटी सीटी स्कैन

पीईटी सीटी स्कैन एक विशेषीकृत सीटी स्कैन है जिसमें स्कैन के एक घंटे या कुछ समय पहले नस में एक विशेष डाई घुसाई जाती है। पीईटी सीटी स्कैन सामान्यतया ब्लैडर कैंसर के स्टेज का पता लगाने के लिए किया जाता है। एक मानक सीटी स्कैन की तुलना में इस टेस्ट के द्वारा ब्लैडर कैंसर के स्टेज की अधिक सटीकता से जांच की जा सकती है। पीईटी सीटी स्कैन तब किए जाते हैं जब बहुत अधिक एडवांस्ड स्टेज में ब्लैडर कैंसर मालूम होता है। प्रारम्भिक स्टेज के ब्लैडर कैंसर में इस स्कैन का कोई लाभ नहीं होता।

एमआरआई स्कैन

एमआरआई स्कैन में शरीर के भीतरी भागों का चित्र लेने के लिए चुंबक का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार का टेस्ट ब्लैडर कैंसर के निदान या उसके स्टेज को मालूम करने के लिए रूटीन टेस्ट नहीं होता।

बायोप्सी

बायोप्सी वह प्रक्रिया है जिसमें असामान्य ऊतक का एक नमूना लिया जाता है और इसे पैथोलोजिस्ट द्वारा माइक्रोस्कोप में जांचा जाता है। नमूने को लेने के बाद इसे प्रोसेस किया जाता है और इसकी व्याख्या करने के पहले इसमें कुछ विशिष्ट चिह्न लगाए जाते हैं। रिपोर्ट जारी करने के पहले यह सब कुछ दिनों का कार्य होता है। ब्लैडर कैंसर का निदान सामान्यतया सिस्टोस्कोपी में ली गई बायोप्सी से किया जाता है।

सर्जरी

नॉन-इंवेसिव ब्लैडर कैंसर के लिए सामान्यतया सर्जरी उपचार का प्रथम उपाय है। इस सर्जरी में ब्लैडर ट्यूमर निकाला जाता है। यह सिस्टोस्कोप के प्रयोग से यूरोलोजिस्ट के द्वारा जनरल एनेस्थेटिक के अंतर्गत किया जाता है। सिस्टोस्कोप के माध्यम से सर्जिकल इन्स्ट्रुमेंट को डाला जाता है और ब्लैडर ट्यूमर को तोड़ा जाता है। इस प्रकार के रिसेक्शन को ब्लैडर ट्यूमर का ट्रांसयूरेथ्रल रिसेक्शन (TURBT) कहा जाता है। रिसेक्शन के तुरंत बाद कुछ सर्जन ब्लैडर में लोकल कीमोथेरपी देते हैं। यह उपचार कैंसर के पुनः होने के खतरे को कम करने के लिए किया जाता है। इस प्रारम्भिक सर्जरी के बाद एक पैथोलॉजी रिपोर्ट उपलब्ध होगी जो रिसेक्शन के पूरा होने तथा कैंसर के स्टेज और ग्रेड के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देगी। उसके बाद इस बात का निर्णय लिया जाएगा कि क्या कोई और सर्जरी या उपचार विकल्प आवश्यक हैं।

कुछ मामलों में सम्पूर्ण ब्लैडर को निकालने की सर्जरी (सिस्टेक्टोमी) करनी आवश्यक होती है यदि इस सेक्शन में वर्णित उपचारों से कोई फायदा नहीं हुआ हो और उसके बाद भी ब्लैडर में कैंसर मौजूद रहता है। इस विकल्प के बारे में विस्तृत जानकारी इंवेसिव ब्लैडर कैंसर सेक्शन में दी गई है।

इंट्रावेसिकल कीमोथेरेपी

TURBT के बाद ब्लैडर में कीमोथेरेपी देने का एक विकल्प रहता है। इसे इंट्रावेसिकल कीमोथेरपी कहते हैं। यह सर्जरी के तुरंत बाद एक सिंगल डोस होता है या सर्जरी के बाद छह सप्ताह कोर्स होता है। यदि आपके मामले में यह ठीक मालूम होता है तो आपके साथ आपका डॉक्टर विकल्पों के बारे में चर्चा करेगा। यह उपचार नॉन-इंवेसिव ट्यूमर के पुनः न होने के खतरे को कम करने के लिए किया जाता है।
इस प्रक्रिया में आमतौर पर प्रयुक्त औषध मिटोमायसिन-सी, एपीरुबीसिन, डोक्सोरुबीसिन अथवा जेमसीटेबिन हैं। चूंकि ये औषधियाँ केवल ब्लैडर में ही दी जाती हैं इसलिए वे शरीर में अवशोषित नहीं होती इसलिए इनसे कोई साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होते। एक मात्र साइड इफेक्ट होगा वह ब्लैडर में लोकल होगा जो कि पेशाब बार बार आना, पेशाब में जलन या चुभन या खून आना है। कुछ दिनों में ये साइड इफ़ेक्ट्स दूर हो जाएंगे।

इंट्रावेसिकल बीसीजी

नॉन-इंवेसिव ब्लैडर ट्यूमरों के कुछ मामलों में खासकर जब ट्यूमर को हाई ग्रेड में रखा गया हो या ब्लैडर में कई ट्यूमर हों तब उपचार का एक विकल्प इंट्रावेसिकल बीसीजी है। इसमें ब्लैडर में बीसीजी दिया जाता है। बीसीजी एक बेक्टेरियम है जो टीबी की रोकथाम के लिए वेक्सिन के रूप में प्रयुक्त होता है। बीसीजी को ब्लैडर में लोकल इम्यून रिसपोन्स निर्मित करने के रूप में जाना जाता है जो शेष कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद करता है और ब्लैडर में पुनः कैंसर होने के खतरे को कम करता है।
यह उपचार 6 सप्ताहों के लिए सप्ताह में एक बार किया जाता है और उसके बाद छह सप्ताह का ब्रेक होता है। उसके बाद यह फिर से दिया जाता है। कुछ मामलों में बीसीजी 1-3 वर्षों के लिए प्रत्येक छह महीनों में 1-3 सप्ताह के लिए अनुरक्षण डोस के रूप में जारी रखा जा सकता है।
बीसीजी में साइड इफ़ेक्ट्स हो सकते हैं जैसे पेशाब करते समय चुभन या जलन का अनुभव, खून आना, दर्द होना और बार बार पेशाब आना और बुखार और थकान जैसे सामान्य साइड इफ़ेक्ट्स।

सावधानी

उपर्युक्त उपचारों के बाद इस कैंसर के पुनः नहीं होने के प्रति सावधानी के रूप में अपने डॉक्टर से जांच कारवाई जानी चाहिए। इस फॉलो-अप की अवधि क्या होगी उसके बारे में आपका डॉक्टर आपको बताएगा। सिस्टोस्कोपी को दोहराना इस सावधानी प्रोग्राम का एक भाग है।

सर्जरी

इंवेसिव ब्लैडर कैंसर वाले मरीजों के लिए रोगनिवारक उपायों में सर्जरी एक महत्वपूर्ण उपाय है। यह ओपरेशन रेडिकल सिस्टेक्टोमी कहलाता है। यह जनरल एनेस्थेटिक के अंतर्गत किया जाता है। यह प्रक्रिया उन मरीजों में की जाती है जिनकी यह बीमारी ब्लैडर तक ही सीमित हो और बीमारी शरीर के अन्य अंगों और लिम्फ़ ग्रंथियों में नहीं फ़ैली हो। इनमें प्रोस्टेट, सेमीनल वेसिकल्स और मूत्रमार्ग होता है। महिलाओं में यह गर्भाशय, सर्विक्स, डिंबाशय और डिंबवाही नलिका में होता है। रेडिकल सिस्टेक्टोमी एक खुली प्रक्रिया, (पेट में एक बड़ा कट मार कर) लेप्रोस्कोपी (कैंसर के लिए बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न का सेक्शन देखें) और हाल ही की रोबोटिक प्रक्रिया के तहत की जाती है। आंशिक सिस्टेक्टोमी जहां ट्यूमर वाले ब्लैडर का एक भाग निकाल दिया जाता है उसे एक विकल्प के रूप में प्रायः अपनाया जाता है।

जिन मरीजों में अच्छी फ़िटनेस है उनमें सर्जरी के पहले कीमोथेरेपी करना इलाज के लिए लाभप्रद होता है। इसकी अवधि 3 माह होती है और उसके बाद सिस्टेक्टोमी की जाती है। एक सुनिश्चित उपचार के पहले कीमोथेरेपी देने की पद्धति को निओ-एड्जुवंट कीमोथेरपी कहा जाता है।

क्योंकि सामान्यरूप से ब्लैडर में पेशाब संग्रहीत होता है और इसे निकाल दिया जाता है इसलिए शरीर में से पेशाब को बाहर निकालने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था करना आवश्यक होता है।

इन विकल्पों में निम्नलिखित शामिल है –

यूरोस्टोमी

यह सर्व साधारण विकल्प है जिसमें सर्जन छोटी आंत का एक छोटा सा भाग निकाल देता है और मूत्रनली को इस छोटी आंत के सिरे से जोड़ा जाता है। (किडनियों को ब्लैडर से जोड़ना) इस छोटी आंत का दूसरा सिरा एक छिद्र के रूप में पेट की भित्ति से जोड़ा जाता है। इस सिरे से जो पेशाब बाहर आता है वह एक बैग में एकत्रित होता है जिसे इस छिद्र से मजबूती से कसा जाता है।

कंटीनेंट यूरिनरी डायवर्जन

इस पद्धति में छोटी आंत के एक टूकड़े से एक पाउच बनाया जाता है। इस पाउच से मूत्रनलियों को जोड़ा जाता है। पाउच का दूसरा हिस्सा छिद्र के माध्यम से पेट की भित्ति से जोड़ा जाता है। यूरोस्टोमी की तुलना में इस पद्धति का लाभ यह है कि इसमें बैग की आवश्यकता नहीं होती। इसके स्थान पर मरीज पाउच में कैथीटर लगा देता है और पेशाब उसके माध्यम से बाहर निकल जाता है।

नियो ब्लैडर

यहाँ फिर से छोटी आंत के एक भाग से एक पाउच बनाया जाता है और इससे मूत्रनली जोड़ी जाती है। किन्तु, पेट की भित्ति में छिद्र करने की बजाय पाउच से मूत्रमार्ग जोड़ा जाता है और ऐसा करने से सामान्य रूट में पेशाब निकल जाता है।

इन सब पद्धतियों में लाभ और अलाभ दोनों होते हैं। इन पद्धतियों के बारे में निर्णय लेने के पहले यह अच्छा होगा कि इनके फायदे और नुकसान के बारे में जान लेना चाहिए।

रेडिकल सिस्टेक्टोमी के साइड इफेक्ट

रेडिकल सिस्टेक्टोमी के संभावित साइड इफ़ेक्ट्स हैं: दर्द होना, संक्रमण, सर्जरी के बाद मैथुन संबंधी कार्य सही रूप से न होना, पेशाब के मार्ग या ट्यूब में अवरोध होना। प्रारम्भ में पेशाब में खून आना एक आम बात है लेकिन यह कुछ दिनों या सप्ताहों में ठीक हो जाता है।

इंवेसिव ब्लैडर कैंसर के मरीजों के लिए रेडिओथेरपी एक दूसरा रोगनिवारक उपाय है। रेडिओथेरपी सामान्यतया उन मरीजों को दिया जाता है जो रेडिकल सिस्टेक्टोमी के लिए फिट नहीं होते या जो सिस्टोक्टोमी करवाना नहीं चाहते हों। रेडिओथेरपी से लाभ यह है कि उपचार के बाद भी ब्लैडर का कार्य जारी रहता है और कुछ मरीज सर्जरी की तुलना में इसे ज्यादा पसंद करते हैं।रेडिओथेरपी सामान्यतया साढ़े छह सप्ताह के लिए दैनिक, सप्ताह में पाँच दिन के आधार पर दी जाती है। इस उपचार की कुल अवधि अलग अलग सेंटरों में उनके उपचार शिडुल के आधार पर अलग अलग होती है। फिट मरीजों में रेडिओथेरपी कीमोथेरेपी के साथ साथ दी जाती है (इसे कीमो-रेडिओथेरपी कहा जाता है) और इसे केवल रेडिओथेरपी की तुलना में बेहतर माना गया है। रेडिओथेरपी के पहले कीमोथेरपी लेना (निओ-एड्जुवंट कीमोथेरपी) भी लाभप्रद होती है। अतः एक फिट व्यक्ति एक निर्णयात्मक उपचार के रूप में रेडिओथेरपी लेना पसंद करता है तो उसे पहले 3 महीनों तक कीमोथेरपी लेना होगा जिसके बाद साढ़े छह सप्ताह तक कीमोथेरपी और रेडिओथेरपी के मिश्रण के रूप में लेना होगा।

स्टेज 4 ब्लैडर कैंसर के मरीजों में जहां कैंसर शरीर के अन्य अंगों में फैल गया हो रेडिओथेरपी रोगनिवारक विकल्प नहीं है किन्तु इसका प्रयोग खून आना, दर्द होना आदि जैसे लक्षणों में किया जाता है। इसमें उपचार 1 से 10 दिनों की अवधि के लिए किया जाता है।

रेडिओथेरपी के साइड इफ़ेक्ट्स

रेडिओथेरपी के साइड इफ़ेक्ट्स में थकान लगना जो कि आधे उपचार के बाद और उपचार के अंत में होता है। यह कुछ महीनों के लिये रहता है।

ब्लैडर और मल त्याग करने के लक्षण

ब्लैडर के लक्षणों में बार बार पेशाब आना, जलन या चुभन का अनुभव, तुरंत पेशाब आ जाना, खून आना है। मल त्याग करने की प्रक्रिया में दस्त लगना और उसमें खून आना है। ये इफ़ेक्ट्स उपचार समाप्त हो जाने पर कुछ सप्ताह में बंद हो जाते हैं। इनमें से कुछ लक्षण लंबे समय तक जारी रहते हैं।

त्वचा में परिवर्तन

उपचार के अंत में इलाज किए गए भाग पर की चमड़ी लाल हो जाती है और उस पर जख्म भी हो जाते हैं। कभी कभी त्वचा उखड़ जाती है और पीछे इसका नम भाग छूट जाता है। उपचार की गई त्वचा पर से बाल गिरने लगते हैं और उनमें से कुछ बाल तो कुछ समय के बाद वापस उग आते हैं।

प्रजनन अंगों पर प्रभाव

चूंकि ब्लैडर रेडिओथेरपी में पेल्विस का उपचार किया जाता है इसलिए रेडिओथेरपी से प्रजनन तंत्र प्रभावित होते हैं जिसके परिणामस्वरूप बांझपन आ जाता है और योनि के उत्तेजित होने और संकरा होने में कठिनाई होती है।

कीमोथेरेपी में कैंसर-रोधी औषधियों को इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। ये औषधियाँ कैंसर कोशिकाओं को अधिकतम क्षति पहुंचाते हुये उन्हें मारती हैं और साथ ही कुछ सामान्य ऊतकों को भी नुकसान पहुंचाती हैं। कीमोथेरेपी से होनेवाले साइड इफ़ेक्ट्स इन औषधियों का सामान्य ऊतकों को पर दुष्प्रभाव के कारण होते हैं। कैंसर के उपचार में बहुत सारी कीमोथेरेपी औषधियों का प्रयोग किया जाता है। इनका प्रयोग या तो इनके मिश्रण के रूप में किया जाता है या एक ही प्रकार की औषध के रूप में। कीमोथेरेपी साइकल के रूप में दी जाती है, प्रत्येक साइकल 1 से 4 सप्ताह के बीच होता है, सामान्यतया 3 सप्ताह का होता है। दो कीमोथेरपी साइकल के बीच का अंतर उतना रखा जाता है जितना कि अगले डोस के लिए शरीर पूरी तरह से स्वस्थ हो जाए। कीमोथेरपी का कोर्स सामान्यतया कुछ महीनों के लिए चलता है।

ब्लैडर कैंसर में कीमोथेरपी बीमारी के विभिन्न स्टेजों में दी जाती है।
नॉन-इंवेसिव ब्लेडर कैंसर में सर्जरी के बाद ब्लैडर में कीमोथेरपी दी जाती है। इस पहलू पर अधिक जानकारी के लिए ब्लैडर कैंसर की सर्जरी के सेक्शन को देखें।
इंवेसिव ब्लैडर कैंसर में, सर्जरी अथवा रेडिओथेरपी के पूर्व दी जाती है। इस अभिगम को निओ-एड्जुवंट कीमोथेरपी कहा जाता है और जब इस प्रकार से इसे दिया जाता है तो बीमारी के ठीक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। सामान्यतया कीमोथेरपी के 4 साइकल होते हैं। कुछ स्थितियों में कीमोथेरपी सर्जरी के पहले नहीं दी जाती है बल्कि सर्जरी के बाद दी जाती है। इस अभिगम को एड्जुवंट कीमोथेरपी कहा जाता है। ब्लैडर कैंसर की स्थिति में एड्जुवंट कीमोथेरपी के स्थान पर निओ-एड्जुवंट कीमोथेरपी को पसंद किया जाता है।
जब रेडिओथेरपी का प्रयोग उपचार के रोगनिवारक विकल्प के रूप में किया जाता है तब कीमोथेरपी को रेडिओथेरपी के आसपास दिया जाता है। इस प्रकार के उपचार को समवर्ती कीमो-रेडिओथेरपी कहा जाता है और उपचार की इस पद्धति को केवल रेडिओथेरपी देने की तुलना में बेहतर सिद्ध हुई है।
यह नोट किया जाए कि इन स्थितियों में कीमोथेरपी लेने के लिए सभी मरीज फिट नहीं होते और कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर फ़िटनेस और इस उपचार की उपयुक्तता को निर्धारित करते हैं।
स्टेज 4 की बीमारी वाले मरीजों में जहां उपचार विकल्प बीमारी को नियंत्रित करने के लिए अपनाए जाते हैं वहाँ कीमोथेरपी का प्रयोग कैंसर को कम करने और लक्षणों में सुधार लाने के लिए किया जाता है। इस पद्धति को पल्लीएटिव कीमोथेरपी कहा जाता है। यहाँ कीमोथेरपी औषधियाँ मिश्रण के रूप में दी जाती हैं या एक एक दी जाती हैं। यह उपचार 6 साइकलों तक दिया जाता है और इसके रिसपोन्स की जांच करने के लिए बीच बीच में स्कैन किया जाता है।
इंवेसिव ब्लैडर कैंसर कीमोथेरपी में प्रयुक्त कॉमन औषधियाँ हैं-
जेमिसिटैबिन, सिस्प्लैटिन, कार्बोप्लाटिन, मेथोट्रेक्सेट, डॉक्सोरुबिसिन, विन्ब्लास्टाइन, पैक्लिटैक्सेल, डोसेटेक्सेल, विनफ्लुनाइन। ये औषधियाँ जब मिश्रण में दी जाती हैं तो सामान्यतया मिश्रण होता है: जेमिसिटाबाइन और सिस्प्लैटिन या जेमिसिटाबाइन और कार्बोप्लाटिन या MVAC(मिथोट्रेक्सेट, विन्ब्लास्टाइन, डॉक्सोरूबिसिन और सिस्प्लैटिन) का मिश्रण होता है।

इम्यूनोथेरपी में औषधियों का प्रयोग होता है जो शरीर में काम करने वाले प्रतिरक्षण सिस्टम के कार्यों में बदलाव लाता है। इस प्रकार का उपचार कुछ कैन्सरों में एक लंबे समय तक किया जाता है लेकिन नयी इम्यूनोथेरपी औषधिया और अधिक विश्वसनीय हैं और इनका प्रयोग इंवेसिव ब्लैडर कैंसर सहित कई कैंसरों में किया जाता है।

नई पीढ़ी की औषधियाँ

एक साधारण भाषा में कहें तो नयी इम्यूनोथेरपी औषधियों को चेकपॉइंट इनहिबिटर्स कहा जाता है जो PD-1 अथवा PD-L1 रिसेप्टर्स की प्रतिरक्षी होती हैं। ये रिसेप्टर्स शरीर की प्रतिरक्षण सिस्टम (टी कोशिकाओं) द्वारा मैत्रीपूर्ण ढंग से सहायता करके कैंसर कोशिका की पहचान करने में उपयोगी होती हैं। यह प्रतिरक्षण सिस्टम को कैंसर कोशिकाओं से बचाती हैं। कैंसर अधिक से अधिक इन रिसेप्टरों को पैदा करता है और शरीर के प्रतिरक्षण सिस्टम को अपवंचित कर देता है। PD-1 और PD-L1 के विरुद्ध रोगप्रतिकारक का प्रयोग करके इस रास्ते को ब्लॉक कर दिया जाता है और इससे शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली कैंसर कोशिकाओं पर आक्रमण करने और उन्हें मारने में सक्षम हो जाती है।

इस समय यह थेरेपी स्टेज 4 के ब्लैडर कैंसर में प्रयोग में लायी जाती है जिसमें शरीर के अन्य भागों में कैंसर फैल जाता है और इस उपचार का उद्देश्य इस बीमारी पर नियंत्रण लाना है।

हाल में ब्लैडर कैंसर में प्रयुक्त औषध अटेज़ोलिजुमैब, पेम्ब्रोलिजुमैब,निवोलुमैब, दुर्वलूमैब और आवेलूमैब हैं। कीमोथेरपी के प्रारम्भिक उपचार जिसमें या तो सिस्प्लैटिन या कार्बोप्लाटिन होता है, के बाद सेकंड लाइन उपचार के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।
ये उपचार नसों में ड्रिप के रूप में किया जाता है 2-3 सप्ताह में एक बार दिया जाता है।

इम्यूनोथेरपी के लाभ देखने के लिए टेस्ट

कैंसर में PD-L1 स्तर की मौजूदगी को जानने के लिए टेस्ट उपलब्ध हैं और इनमें से कुछ इम्यूनोथेरपी औषध उन मरीजों में बेहतर परिणाम देते हैं जहां PD-L1 का स्तर अधिक हो। फिर भी ब्लैडर कैंसर में इस टेस्ट को करना आवश्यक नहीं है।

चेकपोइंट इनहिबिटर्स के साइड इफ़ेक्ट्स

यद्यपि इम्यूनोथेरपी में कीमोथेरपी की तुलना में बहुत ही कम साइड इफ़ेक्ट्स होते हैं फिर भी इन औषधियों में साइड इफ़ेक्ट्स होते हैं जिनकी सूची नीचे दी गई है। इनमे से कुछ साइड इफ़ेक्ट्स बहुत ही दर्दनाक और जानलेवा होते हैं जिनकी वजह से इन औषधियों को बंद कर देना आवश्यक हो जाता है।

चेकपोइंट इनहिबिटर्स के कॉमन साइड इफ़ेक्ट्स हैं: थकान, खांसी आना, श्वास लेने में दिक्कत होना, पतले दस्त लगना, उबकियाँ आना, उल्टियाँ होना, बुखार आना, त्वचा में जलन, सिर दर्द, जोड़ों का दर्द जो उलझन भरे हों या जोड़ों में सूझन आना। इनमें से अधिकतर इफ़ेक्ट्स बहुत ही हल्के होते हैं और दवाइयों से नियंत्रित किए जाते हैं।

क्योंकि ये औषधियाँ शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति को प्रभावित करती हैं अतः इनसे रोगप्रतिकारक सिस्टम से उपजे साइड इफ़ेक्ट्स होते हैं जो शरीर के कई अंगों जैसे लिवर, फेफड़े, थाइरोइड, आँतें और श्लेष्मीय (पिच्युटरी) ग्रंथि को प्रभावित करती हैं जिसकी वजह से इन ग्रंथियों का कार्य मंद हो जाता है और ऐसे लक्षण पैदा होते हैं कि मरीज अस्वस्थ महसूस करने लगता है। इस प्रकार के साइड इफ़ेक्ट्स के बारे में डॉक्टर का ध्यान दिलाया जाना चाहिए।