Chronic Lymphocytic Leukaemia (CLL)

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल)

ल्यूकेमिया (अधिश्वेत रक्तता) सफेद रक्त कोशिकाओं का एक कैंसर है। इसके विभिन्न प्रकार होते हैं, जिन्हें उन श्वेत रक्त कोशिकाओं के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो ल्यूकेमिया में बदल जाते हैं। साथ ही, यह कैंसर तेजी से (तीव्र) या धीरे-धीरे (जीर्ण) बढ़ता है।

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) की बात करें, तो यह ल्यूकेमिया का ही एक प्रकार है, जो तब विकसित होता है, जब लिम्फोसाइट नामक श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक भाग, बिना नियंत्रण के बढ़ जाता है। ये कोशिकाएं अस्थि मज्जा में बनती हैं और रक्त प्रवाह में जाती हैं। रक्त और अस्थि मज्जा के अलावा, लिम्फ नोडों और प्लीहा में भी असामान्य लिम्फोसाइट पाए जाते हैं। लिम्फोसाइट का कार्य संक्रमणों से बचाव करना है। सीएलएल (CLL) में मौजूद असामान्य लिम्फोसाइट ठीक से काम नहीं करते हैं और साथ ही, अन्य रक्त कोशिकाओं, जैसे कि लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट में भी कमी ला सकते हैं। सीएलएल आमतौर पर बढ़ता है लेकिन इसका बढ़ना धीरे-धीरे होता है।

एसएलएल (लघु लिम्फोसाइटिक लिम्फोमा)

एसएलएल बहुत हद तक सीएलएल के समान ही होता है, क्योंकि यह भी लिम्फोसाइटों से विकसित होता है। यह एक निम्न श्रेणी का (लो ग्रेड) लिंफोमा है। इन दोनों में यह अंतर है कि सीएलएल मुख्य रूप से रक्त प्रवाह में होता है, जबकि एसएलएल अधिकतर लिम्फ नोडों में पाए जाते हैं। सीएलएल और एसएलएल को समान तरीके से प्रबंधित किया जाता है।

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया धीरे-धीरे बढ़ता है और ज्यादातर, इसका पता तब चलता है, जब अन्य कारणों से परीक्षण किए जाते हैं। एक नियमित रक्त परीक्षण लिम्फोसाइटों की संख्या में वृद्धि दर्शाता है। रोग निर्णय किए जाने से पहले भी कुछ मरीजों में निम्न प्रकार के लक्षण विकसित हो जाते हैं-

लिम्फ नोडों का बढ़ना

लिम्फ नोडों का बढ़ना, सीएलएल का एक सामान्य लक्षण है। ये लिम्फ नोड गरदन, कांख, सीने, कच्छ भागों या उदर में हो सकते हैं। बढ़े हुए लिम्फ नोड अलग-अलग आकार के हो सकते हैं, और समय के साथ आकार में बढ़ सकते हैं, या छोटे हो सकते हैं। ये आमतौर पर दर्द करने वाले नहीं होते हैं।

संक्रमण

सीएलएल वाले मरीजों में ऐसे लिम्फोसाइटों की संख्या में वृद्धि होती है, जो ठीक से काम नहीं करते और इसलिए, मरीजों में किसी भी प्रकार से संक्रमण होने का अधिक खतरा हो सकता है।

अन्य लक्षण

सीएलएल वाले मरीजों में होने वाले अन्य लक्षणों में वजन कम होना, बुखार होना, थकान लगना और रात में पसीना आना शामिल हो सकते हैं। अस्थि मज्जा में हुए इस रोग के चलते घाव, रक्तस्राव या हड्डियों में घाव या पीड़ा भी हो सकती है।

जब सीएलएल होने का संदेह होता है, तो रोग की पुष्टि करने के लिए निम्न परीक्षण (जांच) किए जाते हैं।

रक्त परीक्षण (खून की जांच)

खून में बड़े हुए लिंफोसाइटों का पता लगाने के लिए सीबीपी (CBP) या पूर्ण रक्त चित्र नामक रक्त परीक्षण किया जाता है, क्योंकि खून में लिंफोसाइटों का बढ़ना, सीएलएल का एक लक्षण है। अन्य कारणों का पता लगाने के लिए इस परीक्षण को नियमित रूप से किया जाता है और इस प्रकार से रोग निर्णय के पहले सीएलएल को देखा जा सकता है। एसएलएल, जो सीएलएल का ही एक प्रकार है, इससे पीड़ित मरीजों में, लिम्फोसाइट काउंट सामान्य बात हो सकती है। सीबीपी करने पर, लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट की कम हुई संख्या का भी पता चल सकता है।

फ़्लो साइटोमेट्री

यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें रक्त कोशिकाओं को उनके भौतिक और रासायनिक गुणों के आधार पर बांटा जाता है। फ्लो साइटोमीटर एक ऐसी मशीन है, जो रक्त के नमूने का विश्लेषण करती है। इससे क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया का पता लगाने में मदद मिलती है।

बोन मैरो (अस्थि मज्जा) बायोप्सी

यह परीक्षण आमतौर पर सीएलएल की पुष्टि के लिए नहीं किया जाता है।

लिम्फ नोड बायोप्सी

यह परीक्षण कभी-कभी किया जाता है और तब किया जाता है, जब मरीज में बढ़े हुए लिम्फ नोड्स देखे जाते हैं और सीएलएल की पुष्टि अभी तक नहीं हुई होती है। कई कारणों से लिम्फ नोड बढ़ जाते हैं और ऐसे में बढ़ी हुई लिम्फ ग्रंथि की बायोप्सी करके सीएलएल या एसएलएल का पता लगाया जा सकता है।

छाती का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड स्कैन और सीटी स्कैन

बढ़े हुए नोडों या अंगों को देखने के लिए, छाती का एक्स-रे और पेट का अल्ट्रासाउंड स्कैन किया जाता है। सीएलएल के फूल स्टेज को जानने के लिए इसी प्रक्रिया के तहत सीटी स्कैन किया जा सकता है।

आनुवंशिक परीक्षण (जेनेटिक टेस्ट)

सीएलएल के पुष्टि करने वाले उत्परिवर्तनों को देखने के लिए, परीक्षण के लिए ली गईं रक्त कोशिकाओं पर आनुवंशिक परीक्षण किए जाते हैं तथा डॉक्टर को बताया जाता है कि कौन सा उपचार सबसे प्रभावी होने वाला है। ये परीक्षण फिश (FISH) (फ्लुओरोसेंस इन सीटू हाइब्रिडाइजेशन) नामक एक विधि द्वारा किए जाते हैं।

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया को दो सिस्टमों के आधार पर स्टेज में बांटा जाता है। एक राय सिस्टम और दूसरा बिनेट सिस्टम। नीचे, राय सिस्टम के अनुसार स्टेजिंग को दर्शाया गया है।

जोखिम स्टेज विवरण
कम जोखिम 0 रक्त और अस्थि मज्जा में लिम्फोसाइटों में वृद्धि
इंटरमीडिएट 1 बढ़े हुए लिम्फोसाइट और बढ़े हुए लिम्फ नोड
इंटरमीडिएट 2 बढ़े हुए लिम्फोसाइट और बड़ा हुआ लीवर या बढ़े हुए लिम्फ नोडों के बिना या उसके साथ प्लीहा
हाई (उच्च) 3 बढ़े हुए लीवर, प्लीहा या लिम्फ नोडों के साथ या इनके बिना बढ़े हुए लिम्फोसाइट और एनीमिया
हाई (उच्च) 4 उपरोक्त कारकों के साथ या बिना, लिम्फोसाइटों में वृद्धि और प्लेटलेट में कमी

बिनेट स्टेजिंग सिस्टम को यहां सूचीबद्ध नहीं किया गया है।

सीएलएल के मरीजों में लक्षणों और नैदानिक प्रत्यक्षीकरण का एक विस्तृत स्पेक्ट्रम मौजूद होता है। उपचार के विकल्प, रोग-निर्णय के समय कैंसर के स्टेज (रोग के चरण), मरीज की उम्र और उसकी सेहत पर निर्भर करते हैं।

का प्रारंभिक चरण (स्टेज)

रोग के प्रारंभिक चरण से गुजरने वाले मरीजों में, जिनके कोई लक्षण नहीं दिखता, उनका तत्काल उपचार शुरू नहीं किया जाता है। प्रत्येक 3 महीने में उनका रक्त परीक्षण करने के साथ ही उन्हें सघन निगरानी में रखा जाता है तथा उपचार केवल तब शुरू किया जाता है, जब मरीज में लक्षण दिखने लगते हैं या सीएलएल उम्मीद से अधिक तेजी से बढ़ रहा होता है। उन मरीजों में, जिनमें सीएलएल प्रारंभिक चरण में होता है, उनके लिए किसी भी उपचार को शुरू करने से पहले, उन्हें वर्षों तक सघन निगरानी में रखने की जरूरत होती है।

रोग के सक्रिय होने की स्थिति में उपचार

सीएलएल की पुष्टि वाले मरीजों में, राय स्टेजिंग सिस्टम के अनुसार, तीसरे और चौथे चरण (स्टेज) में उनके पहुंचने को सक्रिय रोग कहा जाता है। इसके अलावा, अगर वे एनीमिया से पीड़ित हैं, या उनमें प्लेटलेट की संख्या, निश्चित लेवलों से कम है या जिनमें लिम्फ नोडों या प्लीहा जैसे अंगों में वृद्धि हुई है या उनमें थकावट, बुखार जैसे लक्षण हैं या उनका वजन 10% से अधिक घट गया है या उनमें रात में पसीना आने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, तो भी वे सक्रिय मरीज माने जाते हैं।

उपचार के विकल्प

सक्रिय रोग से पीड़ित माने जाने वाले मरीजों में और जिन्हें उपचार की आवश्यकता है, उनके लिए निम्न विकल्प उपलब्ध हैं। आनुवंशिक परीक्षण में मिलने वाले उत्परिवर्तन के आधार पर उपचार के विकल्प का चयन किया जा सकता है।

कीमोथेरपी

कीमोथेरपी क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक बहुत ही सामान्य विकल्प है। कीमोथेरपी कैंसर को अच्छी तरह से नियंत्रित करने में प्रभावी है तथा कीमोथेरपी किए जाने वाले मरीजों में, इस उपचार के विभिन्न लाइनों के बीच, लंबे समय का अंतराल हो सकता है। इस सेटिंग में उपयोग की जाने वाली आम कीमोथेरपी दवाओं या रेजिमेंस में फ़्लुडरैबिन, बेंडामुस्टाइन, साइक्लोफ़ोस्फामाइड, क्लोरैम्बुसिल और पेंटोस्टैटिन शामिल हैं। इन्हें एकल एजेंट के रूप में या दो या अधिक दवाओं के संयोजन में या लक्षित चिकित्सा दवाओं के संयोजन में दिया जा सकता है।

थेरेपी के लिए लक्षित दवाएं

ये ऐसी दवाएं हैं, जो विशेष रूप से, सीएलएल कोशिकाओं के उन कुछ लक्ष्यों पर कार्य करती हैं, जिसपर वे प्रभावी होती हैं। ये दवाएं कीमोथेरपी से हटकर हैं तथा वे मुख्य रूप से, कीमोथेरपी दवाओं की तुलना में, सामान्य कोशिकाओं पर कम प्रभाव वाले कैंसर कोशिकाओं पर प्रभाव डालती हैं। लक्षित एजेंटों के रूप में उपयोग की जाने वाली सामान्य प्रकार की दवाओं में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी और टायरोसिन किनासे इन्हिबिटर्स शामिल हैं। आमतौर पर, सीएलएल का इलाज करने के लिए रिटुक्सीमैब, ओफाटुमुमैब, एलेम्टुजुमैब और इब्रुटिनिब जैसी दवाओं का उपयोग किया जाता है। उन्हें कीमोथेरपी के साथ संयोजन में दिया जाता है और इन सभी दवाओं को मरीज में नसों के माध्यम से दिया जाता है। ऊपर वर्णित दवाओं के साथ, प्रारंभिक चिकित्सा के बाद सीएलएल में उपयोग की जाने वाली अन्य दवाएं इडेलालिसिब, डुवेलिसिब और वेनेटोक्लेक्स आदि हैं।

हेमेटोपोएटिक सेल (रक्‍तोत्पादक कोशिका) प्रत्यारोपण या स्टेम सेल (मूल कोशिका) प्रत्यारोपण

यह विशेष रूप से, सीएएल (CLL) वाले युवा मरीजों के लिए उपचार का एक प्रकार है। इस स्थिति में उपचार के लिए, यह एकमात्र संभावित उपचारात्मक विकल्प है।

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किए जाने वाले मरीज का चयन करने से पहले, उसकी उम्र, उसको हुए अन्य रोग तथा उसकी सेहत को ध्यान में रखा जाता है।

इस प्रत्यारोपण के लिए, एक डोनर (दाता) की जरूरत होती है, जिससे स्टेम सेल लिया जाता है। यह डोनर उसका जुड़वा अगर हो तो, या माता-पिता या भाई-बहन हो सकता है या ऐसे डोनर से भी स्टेम सेल ली जा सकती हैं, जो मरीज का संबंधी न हो।

इस बात पर भी ध्यान दिया जाता है कि डोनर की कोशिका (स्टेम सेल) मरीज से कितना मिलती (एचएलए मैच) है। यह पूरी तरह से मिलनी चाहिए, यानी डोनर (दाता) और मरीज के बीच एचएलए में पूरी तरह से मिलान होना चाहिए। अमिलान वहां होता है, जहां कोई मिलान नहीं होता तथा अर्ध-मिलान उसे कहा जाता है, जिसमें डोनर (दाता) और मरीज के बीच आधा मिलान होता है।

उपलब्धता के आधार पर, स्टेम सेल (मूल कोशिकाओं) को रक्त, अस्थि मज्जा या गर्भनाल के रक्त से एकत्र किया जाता है।

कंडीशनिंग ट्रीटमेंट (प्रानुकूलन उपचार)

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया में स्टेम सेल प्रत्यारोपण करने से पहले, रक्त और मज्जा में सभी रक्त कोशिकाओं को काटकर अलग करने के लिए कंडीशनिंग कीमोथेरेपी की जाती है। यह डोनर (दाता) से कोशिकाओं को देने से पहले, सभी ल्यूकेमिया कोशिकाओं को मारने में मदद करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर, सीएलएल में, अन्य स्थितियों वाले मरीजों की तुलना में, कम तीव्रता वाला प्रत्यारोपण किया जाता है।

स्टेम (मूल) कोशिकाओं का संग्रहण

स्टेम सेल (मूल कोशिकाएं) एक प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो किसी भी प्रकार की रक्त कोशिकाओं, जैसे कि लाल रक्त, श्वेत रक्त कोशिका या प्लेटलेट्स में विकसित होने की क्षमता रखती हैं। ये स्टेम सेल (मूल कोशिकाएं) रक्त प्रवाह और अस्थि मज्जा में मौजूद होते हैं तथा मरीज को उच्च डोज वाली कीमोथेरेपी देने से पहले, शुरू में ही मरीज से एकत्र कर लिए जाते हैं।

यदि स्टेम सेल (मूल कोशिकाएं) दूसरे व्यक्ति (डोनर) से ली गई हैं, तो एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) कहा जाता है। यह डोनर (दाता), मरीज का कोई संबंधी, जैसे कि आम तौर पर भाई या बहन या असंबंधी भी हो सकता है, लेकिन मिलान वाला डोनर (दाता) होना चाहिए। एक अमिलान या आंशिक रूप से मिलान वाले डोनर (दाता) का भी उपयोग किया जा सकता है।

स्टेम कोशिकाओं के संग्रह से पहले, मरीज को जी-सीएसएफ (G-CSF) के साथ कीमोथेरेपी की जा सकती है और इंजेक्शन दिए जा सकते हैं, इससे सफल संग्रह प्राप्त करने के लिए रक्त में स्टेम कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है।

स्टेम कोशिकाओं के संग्रह के दिन, डोनर (दाता) को एक मशीन के माध्यम से जोड़ा जाता है और उसकी एक नस से खून निकाला जाता है और इस निकाले गए खून को मशीन से गुजारकर इसमें मौजूद स्टेम कोशिकाओं को एकत्र किया जाता है। उसके बाद उस खून को फिर से दूसरी नस के द्वारा डोनर (दाता) में चढ़ा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ घंटे लग जाते हैं।

एकबार, जब स्टेम कोशिकाएं एकत्र हो जाती हैं, तो मरीज को हाई डोज वाली कीमोथेरेपी दी जाती है। कीमोथेरेपी के बाद, डोनर (दाता) से ली गईं स्टेम कोशिकाओं को मरीज में नस के द्वारा डाला जाता है। ये कोशिकाएं मरीज के अस्थि मज्जा में जाकर फिर से रक्त कोशिकाएं बनाना शुरू कर देती हैं।

अस्थि मज्जा (बोन मैरो) का संग्रहण

अस्थि मज्जा (बोन मैरो) की बात करें, जो यह स्पंज जैसा एक पदार्थ है, जो अस्थियों (हड्डियों) के अंदर होता है। अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के लिए, मरीज को हाई डोज कीमोथेरेपी देने से पहले, मज्जा को एकत्र करने की जरूरत होती है। मज्जा को एकत्र करने की प्रक्रिया आमतौर पर ऑपरेशन थियेटर में व्यक्ति को बेहोश करके की जाती है। मज्जा को शरीर में अलग-अलग जगह की हड्डियों से निकाला जा सकता है और इस प्रक्रिया के तहत लगभग 1 लीटर मज्जा निकाली जाती है। मज्जा को बाहर निकालने के बाद, इसे संग्रहित किया जाता है तथा आवश्यकतानुसार मरीज के शरीर में नस के माध्यम से डाल दिया जाता है।

स्टेम सेल (मूल कोशिका) और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मैरो ट्रांस्प्लांट) के जोखिम और दुष्प्रभाव

स्टेम सेल (मूल कोशिका) या बोन मैरो ट्रांसप्लांट (अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण) करवाना एक जटिल प्रक्रिया है और इसके कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इस प्रक्रिया में, आमतौर पर, प्रत्यारोपण के बाद मज्जा और रक्त में रक्त कोशिकाओं को रिकवर होकर सामान्य स्तरों तक आने के लिए अस्पताल में कुछ दिन रुकना पड़ता है। इस प्रक्रिया से जुड़े आम दुष्प्रभावों में निम्न शामिल हैं-

मतली, उल्टी, बालों का झड़ना, यकृत के कार्य में परिवर्तन आदि, इस उपचार के संभावित दुष्प्रभाव हैं।

सफेद रक्त कोशिकाओं के रूप में संक्रमण का खतरा कम होता है लेकिन मरीज को संक्रमण होने का खतरा होता है। संक्रमण बैक्टीरिया के चलते, वायरल या फंगल हो सकता है और इन संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है।

कीमोथेरेपी के प्रभाव के कारण, मुंह के साथ ही पाचन तंत्र की अंदरूनी परत पर म्यूकोसाइटिस होता है। इसके होने से मरीज द्वारा ली जाने वाली भोजन की मात्रा कम हो सकती है और ऐसे में भोजन ग्रहण करने के अन्य तरीकों का उपयोग किया जा सकता है।

प्लेटलेट काउंट कम होने के कारण इस प्रक्रिया के दौरान ब्लीडिंग हो सकती है, लेकिन प्लेटलेट काउंट को बनाए रखने के लिए, प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन दिया जा सकता है।

ग्राफ्ट बनाम होस्ट रोग। यह एक डोनर (दाता) से नस के माध्यम से चढ़ाई गई कोशिकाओं की, शरीर के प्रति प्रतिक्रिया है।

रेडियोथेरेपी

सीएलएल (CLL) या सीएलएल (CLL) के एक प्रकार, एसएलएल (छोटे लिम्फोसाइटिक लिम्फोमा) वाले कुछ मरीजों में, उपचार के एक विकल्प के रूप में रेडियोथेरेपी का उपयोग किया जाता है। रेडियोथेरेपी का उपयोग उन मरीजों में किया जाता है, जिनके शरीर के किसी भाग में बढ़ें हुए लिम्फ नोडों के रूप में रोग की एक पृथक उपस्थिति होती है। रेडियोथेरेपी का उपयोग उस क्षेत्र में बीमारी को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। उपचार 3 सप्ताह तक, रोज किया जाता है। रेडियोथेरेपी का उपयोग, उन मरीजों में भी किया जाता है, जिनमें रोग काफी बढ़ गया होता है तथा मरीज में बढ़े हुए लिम्फ नोड या बढ़े हुए प्लीहा जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।