Chronic Myeloid Leukaemia

क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल)

ल्यूकेमिया (अधिश्वेत रक्तता) सफेद रक्त कोशिकाओं का एक कैंसर है। इसके विभिन्न प्रकार होते हैं, जिन्हें उन श्वेत रक्त कोशिकाओं के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो ल्यूकेमिया में बदल जाते हैं। साथ ही, यह कैंसर तेजी से (तीव्र) या धीरे-धीरे (जीर्ण) बढ़ता है।

क्रोनिक मायलोइड ल्यूकेमिया (सीएमएल) की बात करें, तो यह ल्यूकेमिया का एक प्रकार है, जो तब विकसित होता है, जब श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक भाग बिना नियंत्रण के बढ़ जाता है।

शरीर की अधिकांश कोशिकाओं में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं, जिन्हें गुणसूत्र 1 से 23 के नाम से जाना जाता है।

ये गुणसूत्र कई जीनों के वाहक होते हैं। अधिकतर, क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया तब विकसित होता है, जब गुणसूत्र 9 और गुणसूत्र 22 के बीच जीनों का स्थानान्तरण (इंटरचेंज) होता है। गुणसूत्र 9 पर मौजूद एबीएल 1 नामक एक जीन गुणसूत्र 22 पर बीसीआर जीन से संलग्न होकर बीआरसी-एबीएल1 (BRC-ABL1) जीन बनाता है। इसके फलस्वरूप, रक्त में अधिक श्वेत रक्त कोशिकाएं बनने लगती हैं, जो क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया का रूप ले लेती हैं।

एक फिलाडेल्फिया गुणसूत्र (Ph) की बात करें, तो यह गुणसूत्र 22 है, जिसमें बीआरसी-एबीएल1 (BCR-ABL1) जीन होता है। इसे माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है और यह सीएमएल (CML) के निदान में मदद करता है।

क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया कई प्रकार के लक्षण पैदा कर सकता है। क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया कई प्रकार के लक्षण पैदा कर सकता है। अधिकांश लक्षण रक्त में सफेद रक्त कोशिकाओं की अधिक संख्या के कारण बनते हैं। ऐसा भी होता है कि कई मरीजों में कोई भी लक्षण नहीं दिखता है और केवल नियमित रूप से खून की जांच पर ही इसका पता चल पाता है। अन्य मरीजों में निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं।

थकान और कमजोरी

रक्त में अधिक संख्या में डब्ल्यूसीसी (WCC) होने पर, लाल रक्त कोशिकाओं जैसी अन्य रक्त कोशिकाओं के कार्य और विकास में बाधा उत्पन्न होती है। इससे एनीमिया का विकास होता है और इसके चलते थकान और कमजोरी जैसे लक्षण दिखते हैं।

रक्तस्राव (ब्लीडिंग)

उच्च डब्ल्यूसीसी के कारण खून (रक्त) में प्लेटलेट्स में कमी होती है, जिससे रक्तस्राव जैसे लक्षण शुरू हो जाते हैं। यह रक्तस्राव मसूड़ों से या पैखाने के रास्ते हो सकता है, या त्वचा के घिसने पर या त्वचा पर दाने आदि पड़ने के माध्यम से हो सकता है।

पेट दर्द या सूजन

प्लीहा शरीर का एक अंग है, जो उदर के बाईं ओर स्थित होता है। प्लीहा सीएमएल (CML) में वृद्धि कर सकता है और यह कभी-कभी बड़े आकार में परिवर्तित हो जाता है, जिसके चलते पेट में खिंचाव, सूजन या भारीपन, पेट का फूलना या पेट में दर्द होना जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं।

संक्रमण

ऐसी स्थिति में उच्च डब्ल्यूसीसी होने के बावजूद, वे कोशिकाएं, काफी ठीक तरह से काम नहीं करतीं, इसलिए, बार-बार संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

बुखार और रात को पसीना आना

ये लक्षण सीएमएल वाले कुछ मरीजों में हो सकते हैं।

अन्य लक्षण

सीएमएल के अन्य लक्षणों में, अस्थियों के जोड़ और अस्थियों (हड्डियों) में दर्द, लिम्फ नोडों का बढ़ना या वजन कम होना आदि शामिल होते हैं।

एक बार सीएमएल (CML) पर संदेह होने पर, रोग-निर्णय के लिए निम्न परीक्षण (जांच) किए जाते हैं।

सीबीपी (CBP) और ब्लड फिल्म

रक्त (खून) का एक पूरा चित्र या रक्त गणना (ब्लड काउंट) से, आमतौर पर सीएमएल (CML) के होने का ठोस प्रमाण मिलता है। रक्त परीक्षण (खून की जांच) से पता चलता है कि श्वेत रक्त कोशिकाओं में लगभग 100,000 (सामान्य स्तर 4000-11000 होता है) वृद्धि हुई है। सीएमएल (CML) वाले सभी मरीजों में 100,000 काउंट नहीं होता, लेकिन 12000 से लेकर 100,000 के बीच या इससे ऊपर काउंट हो सकता है। यह याद रखना होगा कि एक बड़ी हुई श्वेत कोशिका काउंट (गणना), आमतौर पर अन्य कारणों से होती है और संक्रमण जैसे कैंसर से संबंधित नहीं होती है। जब इसे माइक्रोस्कोप से देखा जाता है, तो ये बड़ी हुई कोशिकाएं, एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं ही होती हैं, जिन्हें माइलोसाइट कहा जाता है। प्लेटलेट, हीमोग्लोबिन और अन्य श्वेत रक्त कोशिकाओं जैसी अन्य रक्त कोशिकाएं कम या अधिक हो सकती हैं।

बोन मैरो (अस्थि मज्जा) बायोप्सी

बोन मैरो (अस्थि मज्जा), वह जगह होती है, जहां नई रक्त कोशिकाएं पैदा होती हैं। जब रक्त कोशिकाओं के कैंसर का संदेह होता है, तो बोन मैरो बायोप्सी की जाती है, ताकि मज्जा (मैरो) में कोशिकाओं को देखकर रोग-निर्णय किया जा सके।

आनुवंशिक परीक्षण (जेनेटिक टेस्ट)

बीसीआर-एबीएल1 (BCR-ABL1) प्रोटीन को देखने के लिए आनुवंशिक परीक्षण किया जाता है। इसे फिश (FISH) या आरटी-पीसीआर (RT-PCR) परीक्षण द्वारा किया जाता है। यह परीक्षण (जांच) सीएमएल (CML) वाले 90% से अधिक मरीजों में असामान्य स्थानान्तरण को दर्शाता है। इन्हें Ph (पीएच) गुणसूत्र पॉजिटिव तथा बाकी को Ph (पीएच) निगेटिव मरीज कहा जाता है।

सीएमएल के होने की पुष्टि उच्च श्वेत रक्त कोशिका संख्या की उपस्थिति, BCR-ABL1 फ्यूजन जीन या mRNA की उपस्थिति और Ph गुणसूत्र के प्रदर्शन से होती है।

क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया को ब्लास्ट कोशिकाओं की संख्या के आधार पर 3 चरणों में विभाजित किया जाता है। ब्लास्ट कोशिकाओं की बात करें, तो ये अपरिपक्व श्वेत रक्त कोशिकाएँ होती हैं। मायलोसाइट भी अपरिपक्व श्वेत रक्त कोशिकाएं ही हैं लेकिन ये ब्लास्ट कोशिकाओं की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं। इसके तीन चरण निम्न प्रकार हैं-

क्रोनिक चरण

सीएलएल (CML) वाले अधिकांश मरीज, यानी 80-85% मरीज, रोग के क्रोनिक चरण में होते हैं। यहां, अस्थि मज्जा में ब्लास्ट कोशिकाओं का प्रतिशत 5% से कम होता है। इस चरण में बीमारी धीमी गति से बढ़ रही होती है, जिसे उपचार करके अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है।

त्वरित (एक्सेलरेटेड) चरण

इस चरण में, अस्थि मज्जा या रक्त में ब्लास्ट कोशिकाओं की संख्या 10% से 19% के बीच होती है।

विस्फोटक चरण (ब्लास्ट फेज)

इस चरण में, रक्त या अस्थि मज्जा में 20% से अधिक ब्लास्ट कोशिकाएं होती हैं।

सीएलएल (CML) वाला मरीज, समय के साथ, एक चरण से दूसरे चरण में जा सकता है या ब्लास्ट फेज में जाने पर सीएमएल वाले मरीज का पता चल सकता है। चूंकि विस्फोट चरण में अधिक ब्लास्ट कोशिकाएं होती हैं, इसलिए अन्य चरणों की तुलना में, इस चरण में इसका इलाज करना अधिक कठिन होता है।

अधिकांश मरीजों में क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया को इलाज करके आसानी से ठीक किया जा सकता है। उपचार (इलाज) का विकल्प रोग के चरण, लक्षण और मरीज की फिटनेस पर निर्भर करता हैं।

अधिकांश मरीज जो क्रोनिक चरण में होते हैं उनके लिए तथा तीव्र (त्वरित) और विस्फोटक (ब्लास्ट) वाले चरण के मरीजों का प्रारंभिक उपचार (लक्षित उपचार) दवाओं के रूप में उपलब्ध है, जिन्हें, टाइरोसिन किनासे इन्हिबिटर्स (tyrosine kinase inhibitors) या टीकेआई (TKI) कहा जाता है। लंबे समय से बीमार मरीजों के लिए यह एकमात्र प्रारंभिक उपचार हो सकता है और इससे उनमें लंबे समय तक अच्छे परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। त्वरित चरण (accelerated phase) या विस्फोटक चरण (blast phase) वाले मरीजों के लिए टीकेआई (TKI) का उपयोग प्रारंभिक उपचार के रूप में किया जाता है ताकि मरीजों को पहले की स्थिति या पुराने चरण में लाया जा सके। इसके बाद, इन मरीजों का स्टेम सेल प्रत्यारोपण किया जा सकता है।

टायरोसिन किनासे इनहिबिटर्स

सीएमएल के उपचार की श्रेणी में आने वाली दवाओं में इमाटिनिब (Imatinib), दसाटिनिब (Dasatinib), निलोटिनिब (Nilotinib), बोसुटिनिब (Bosutinib) और पोनाटिनिब (Ponatinib) शामिल हैं। इनमें से इमाटिनिब (Imatinib) का सबसे अधिक किया जाता है और यह भारतीयों पर अधिक प्रभावी होती है। इन दवाओं का सेवन गोलियों के रूप में किया जाता है। इनमें से कुछ गोलियों को कुछ खाने के बाद, तो कुछ को खाली पेट लिया जाता है। इन दवाओं के कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन ये दवाएं काफी प्रभावी होती हैं। इन दवाओं के सामान्य दुष्प्रभावों की बात करें, तो मितली आना, दस्त आना, त्वचा पर चकत्ते पड़ना, चेहरे और पैरों की सूजन, उल्टियाँ आदि हैं। इन टीकेआई (TKI) के दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) अलग-अलग होते हैं और इनका दुष्प्रभाव प्रयोग करने वाली दवा पर निर्भर करता हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि दवा को बिना किसी रुकावट के नियमित रूप से लिया जाए ताकि उनका अधिकतम लाभ मिल सके।

अनुक्रियात्मक मूल्यांकन एवं उपचार की निगरानी

टीकेआई (TKI) उपचार होने वाले मरीजों का अनुक्रियात्मक मूल्यांकन श्रृंखलाबद्ध रूप से किए जाने वाले उनके रक्त और आनुवंशिक परीक्षणों द्वारा किया जाता है। सीबीपी (CBP) कुल श्वेत कोशिकाओं की संख्या ज्ञात करने के लिए किया जाता है और उसमें अगर कमी हुई है, तो यह उपचार में हुई अनुक्रिया का संकेत है। एक सामान्य पूर्ण रक्त गणना (WCC 10000 से कम) पूर्ण रक्तगुल्म अनुक्रिया (haematological response) का संकेत है। यह आमतौर पर, उपचार के 3 महीने के भीतर होता है। फिलाडेल्फिया पॉजिटिव कोशिकाओं के स्तर की जांच के लिए एक रक्त परीक्षण सीएचआर (CHR) के बाद किया जाता है और यदि यह पर्याप्त रूप से कम है, तो कहा जाता है कि एक पूर्ण साइटोजेनेटिक अनुक्रिया (PH+ कोशिकाओं की संख्या) प्राप्त हुई है। Ph+ कोशिकाओं की संख्या के आधार पर इसे मिनिमल, माइनर या मेजर कहा जाता है। जब BCL-ABL1 परीक्षण किया जाता है, तो एक प्रमुख आणविक अनुक्रिया (MMR) प्राप्त होती है और यह स्तर, एक निश्चित स्तर (तीन प्रतिशत कमी) तक गिर जाता है।

टीकेआई (TKI) थेरेपी की अवधि

जिन मरीजों की टीकेआई (TKI) थेरेपी की जानी है, अगर वे इस उपचार को अच्छी तरह सहन कर सकते हैं, तो उन्ही पर दवा का प्रयोग करके उपचार को जारी रखा जाता है। उन मरीजों के लिए, जिनमें टीकेआई (TKI) के इस्तेमाल करने पर भी सीएमएल (CML) में वृद्धि होती है वहां पर टीकेआई (TKI) एक विकल्प होता है। यदि पहले इमाटिनिब (Imatinib) का उपयोग किया गया है, तो अन्य दवाएं जैसे कि दसाटिनिब (Dasatinib), निलोटिनिब (Nilotinib) या बोसुटिनिब (Bosutinib) का भी प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे मरीजों में हेमेटोपोएटिक सेल प्रत्यारोपण करने पर विचार किया जा सकता है।

हेमेटोपोएटिक सेल (रक्‍तोत्पादक कोशिका) प्रत्यारोपण या स्टेम सेल (मूल कोशिका) प्रत्यारोपण

यह उन मरीजों के लिए उपचार का एक विकल्प है, जो क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया के त्वरित (तीव्र) चरण या ब्लास्ट चरण में पहुंच गए हैं। यह क्रोनिक चरण वाले उन मरीजों के लिए भी उपचार का एक विकल्प है, जिन्होंने टीकेआई (TKI) के लिए प्रतिक्रिया नहीं दिखाई है या जिनमें ऐसा रोग है, जो टीकेआई (TKI) उपचार के बाद फिर से बढ़ गया है।

स्टेम सेल (मूल कोशिका) प्रत्यारोपण के लिए, मरीज का चयन करने से पहले, ध्यान देने वाली बातों की बात करें, तो मरीज की आयु, उसे हुए अन्य रोग और उसकी सेहत पर विचार किया जाता है।

इस प्रत्यारोपण के लिए, एक डोनर (दाता) की जरूरत होती है, जिससे स्टेम सेल लिया जाता है। यह डोनर उसका जुड़वा अगर हो तो, या माता-पिता या भाई-बहन हो सकता है या ऐसे डोनर से भी स्टेम सेल ली जा सकती हैं, जो मरीज का संबंधी न हो।

इस बात पर भी ध्यान दिया जाता है कि डोनर की कोशिका (स्टेम सेल) मरीज से कितना मिलती (एचएलए मैच) है। यह पूरी तरह से मिलनी चाहिए, यानी डोनर (दाता) और मरीज के बीच एचएलए में पूरी तरह से मिलान होना चाहिए। अमिलान वहां होता है, जहां कोई मिलान नहीं होता तथा अर्ध-मिलान उसे कहा जाता है, जिसमें डोनर (दाता) और मरीज के बीच आधा मिलान होता है।

उपलब्धता के आधार पर, स्टेम सेल (मूल कोशिकाओं) को रक्त, अस्थि मज्जा या गर्भनाल के रक्त से एकत्र किया जाता है। चाहें स्टेम सेल को रक्त या अस्थि मज्जा से एकत्र किया गया हो, यह मरीज की स्थिति, डोनर (दाता) और मौजूद सीएमएल के प्रकार पर निर्भर करता है।

कंडीशनिंग ट्रीटमेंट (प्रानुकूलन उपचार)

क्रोनिक मायलॉइड ल्यूकेमिया में स्टेम सेल प्रत्यारोपण करने से पहले, रक्त और मज्जा में सभी रक्त कोशिकाओं को काटकर अलग करने के लिए कंडीशनिंग कीमोथेरेपी की जाती है। यह डोनर (दाता) से कोशिकाओं को देने से पहले, सभी ल्यूकेमिया कोशिकाओं को मारने में मदद करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर, इस्तेमाल की जाने वाली उपचार दवाओं में बुसुल्फान और साइक्लोफोस्फाइड शामिल हो सकती हैं तथा साथ ही पूरे शरीर में एक्सरे उपचार हो सकता है। जिन मरीजों की आयु 60 के ऊपर है, और ऐसा लगता है कि उनमें ऊपरोक्त उपचार को सहन करने की क्षमता नहीं है, तो उनमें कम तीव्रता वाली कीमोथेरेपी की जाती है।

स्टेम (मूल) कोशिकाओं का संग्रहण

स्टेम सेल (मूल कोशिकाएं) एक प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो किसी भी प्रकार की रक्त कोशिकाओं, जैसे कि लाल रक्त, श्वेत रक्त कोशिका या प्लेटलेट्स में विकसित होने की क्षमता रखती हैं। ये स्टेम सेल (मूल कोशिकाएं) रक्त प्रवाह और अस्थि मज्जा में मौजूद होते हैं तथा मरीज को उच्च डोज वाली कीमोथेरेपी देने से पहले, शुरू में ही मरीज से एकत्र कर लिए जाते हैं।

यदि स्टेम सेल (मूल कोशिकाएं) दूसरे व्यक्ति (डोनर) से ली गई हैं, तो एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) कहा जाता है। यह डोनर (दाता), मरीज का कोई संबंधी, जैसे कि आम तौर पर भाई या बहन या असंबंधी भी हो सकता है, लेकिन मिलान वाला डोनर (दाता) होना चाहिए। एक अमिलान या आंशिक रूप से मिलान वाले डोनर (दाता) का भी उपयोग किया जा सकता है।

स्टेम कोशिकाओं के संग्रह से पहले, मरीज को जी-सीएसएफ (G-CSF) के साथ कीमोथेरेपी की जा सकती है और इंजेक्शन दिए जा सकते हैं, इससे सफल संग्रह प्राप्त करने के लिए रक्त में स्टेम कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है।

स्टेम कोशिकाओं के संग्रह के दिन, डोनर (दाता) को एक मशीन के माध्यम से जोड़ा जाता है और उसकी एक नस से खून निकाला जाता है और इस निकाले गए खून को मशीन से गुजारकर इसमें मौजूद स्टेम कोशिकाओं को एकत्र किया जाता है। उसके बाद उस खून को फिर से दूसरी नस के द्वारा डोनर (दाता) में चढ़ा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ घंटे लग जाते हैं।

एकबार, जब स्टेम कोशिकाएं एकत्र हो जाती हैं, तो मरीज को हाई डोज वाली कीमोथेरेपी दी जाती है। कीमोथेरेपी के बाद, डोनर (दाता) से ली गईं स्टेम कोशिकाओं को मरीज में नस के द्वारा डाला जाता है। ये कोशिकाएं मरीज के अस्थि मज्जा में जाकर फिर से रक्त कोशिकाएं बनाना शुरू कर देती हैं।

अस्थि मज्जा (बोन मैरो) का संग्रहण

अस्थि मज्जा (बोन मैरो) की बात करें, जो यह स्पंज जैसा एक पदार्थ है, जो अस्थियों (हड्डियों) के अंदर होता है। अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के लिए, मरीज को हाई डोज कीमोथेरेपी देने से पहले, मज्जा को एकत्र करने की जरूरत होती है। मज्जा को एकत्र करने की प्रक्रिया आमतौर पर ऑपरेशन थियेटर में व्यक्ति को बेहोश करके की जाती है। मज्जा को शरीर में अलग-अलग जगह की हड्डियों से निकाला जा सकता है और इस प्रक्रिया के तहत लगभग 1 लीटर मज्जा निकाली जाती है। मज्जा को बाहर निकालने के बाद, इसे संग्रहित किया जाता है तथा आवश्यकतानुसार मरीज के शरीर में नस के माध्यम से डाल दिया जाता है।

स्टेम सेल (मूल कोशिका) और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मैरो ट्रांस्प्लांट) के जोखिम और दुष्प्रभाव

स्टेम सेल (मूल कोशिका) या बोन मैरो ट्रांसप्लांट (अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण) करवाना एक जटिल प्रक्रिया है और इसके कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इस प्रक्रिया में, आमतौर पर, प्रत्यारोपण के बाद मज्जा और रक्त में रक्त कोशिकाओं को रिकवर होकर सामान्य स्तरों तक आने के लिए अस्पताल में कुछ दिन रुकना पड़ता है। इस प्रक्रिया से जुड़े आम दुष्प्रभावों में निम्न शामिल हैं-

मतली, उल्टी, बालों का झड़ना, यकृत के कार्य में परिवर्तन आदि, इस उपचार के संभावित दुष्प्रभाव हैं।

सफेद रक्त कोशिकाओं के रूप में संक्रमण का खतरा कम होता है लेकिन मरीज को संक्रमण होने का खतरा होता है। संक्रमण बैक्टीरिया के चलते, वायरल या फंगल हो सकता है और इन संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है।

कीमोथेरेपी के प्रभाव के कारण, मुंह के साथ ही पाचन तंत्र की अंदरूनी परत पर म्यूकोसाइटिस होता है। इसके होने से मरीज द्वारा ली जाने वाली भोजन की मात्रा कम हो सकती है और ऐसे में भोजन ग्रहण करने के अन्य तरीकों का उपयोग किया जा सकता है।

प्लेटलेट काउंट कम होने के कारण इस प्रक्रिया के दौरान ब्लीडिंग हो सकती है, लेकिन प्लेटलेट काउंट को बनाए रखने के लिए, प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन दिया जा सकता है।

ग्राफ्ट बनाम होस्ट रोग। यह एक डोनर (दाता) से नस के माध्यम से चढ़ाई गई कोशिकाओं की, शरीर के प्रति प्रतिक्रिया है।

कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी का उपयोग सीएमएल वाले मरीजों में, टीकेआई उपचार के बाद या ऐसे उपचार के रूप में किया जाता है, जहां टीकेआई उपचार प्रभावी नहीं होता है। आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में साइटाराबिन, बुसुल्फान और हाइड्रॉक्स्यूरिया शामिल हैं।