Hodgkin Lymphoma

हॉजकिंस लिंफोमा

लिंफोमा

लिंफोमा (लसीकार्बुद) लसीका तंत्र का कैंसर है. लसीका तंत्र में पूरे शरीर में मौजूद लसीका पर्व (लिम्फ नोड्स) और लसीका वाहिकाएं, जो इन लसीका पर्वो को एक-दूसरे के साथ जोड़ती हैं, शामिल होती हैं. प्लीहा, थाइमस ग्रंथि, अस्थि मज्जा और टॉन्सिल जैसे अंग भी लसीका तंत्र का हिस्सा हैं. लसीकाकोशिकाएं, जो रक्त और अस्थि मज्जा में मौजूद सफेद रक्त कोशिकाएं हैं, भी लसीका तंत्र का हिस्सा हैं.

लसीका तंत्र का कार्य अंगों से तरल पदार्थ को बाहर निकालना और शरीर को संक्रमणों से बचाना है. जब संक्रमण शरीर के एक हिस्से में मौजूद होता है, तो उस क्षेत्र में लसीका पर्व संक्रमण को शरीर के अन्य भागों में फैलने से रोकने की कोशिश करते हैं. यह आमतौर पर देखा गया है कि इससे लसीका पर्व (लिम्फ नोड्स) में वृद्धि हो सकती है.

लिंफोमा के प्रकार

लिंफोमा के दो मुख्य प्रकार हैं. पहला हॉजकिंस लिंफोमा और दूसरा गैर हॉजकिंस लिंफोमा कहलाता है.

हॉजकिंस लिंफोमा

हॉजकिंस लिंफोमा का नाम उस व्यक्ति के नाम पर रखा गया है जिसने इस स्थिति का पता लगाया था; जब माइक्रोस्कोप के तहत देखते हैं तो इस लिंफोमा में एक प्रकार की कोशिका होती है जिसे रीड स्टर्नबर्ग कोशिका कहा जाता है. यह लिंफोमा अन्य लिंफोमाओं को अलग ढंग से प्रस्तुत करता है और व्यवहार करता है और एक गैर हॉजकिंस लिंफोमा से अलग तरीके से उपचार किया जाता है. यह सभी लिंफोमा का लगभग 20% है.

माइक्रोस्कोप के तहत कैसे दिखता है, इसके आधार पर हॉजकिंस लिंफोमा फिर से कई प्रकार के हो सकते हैं. इन्हें इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • क्लासिकल हॉजकिंस लिंफोमा
  • नॉड्यूलर स्क्लेरोज़िंग
  • मिश्रित कोशिकीयता
  • लसीका कोशिका प्रधान
  • लसीका कोशिका नि:शेषण
  • पर्विल लसीकाकोशिका प्रधान प्रकार

ग्लोबोकन डेटा 2018 के अनुसार, 2018 में भारत में 9115 नए हॉजकिन लिंफोमा कैंसर थे, जो सभी कैंसर का 0.79% था.

हॉजकिंस लिंफोमा कई लक्षण उत्‍पन्‍न कर सकता है. प्रारंभिक रोग वाले मरीजों में लक्षण न्‍यूनतम या बिल्‍कुल नहीं दिखाई दे सकते हैं.

लसीका पर्वों (लिम्‍फ नोड्स) में सूजन तथा विवर्धन लिंफोमा

देखा गया एक सामान्य लक्षण शरीर में लसीका ग्रंथियों का बढ़ना है. यह गर्दन के क्षेत्र में हो सकता है, कॉंख में, वंक्षण या शरीर के अन्य हिस्सों जैसे छाती या पेट में हो सकता है. ये सूजन आमतौर पर दर्द रहित होती हैं लेकिन कभी-कभी दर्द उत्‍पन्‍न कर सकती हैं. लिम्फ नोड्स संक्रमण सहित कई कारणों से बढ़ सकते हैं और हमेशा लिंफोमा के कारण नहीं.

अन्‍य लक्षण

आमतौर पर हॉजकिन्स लिंफोमा से जुड़े अन्य लक्षणों में बुखार, वजन में कमी, रात में अत्यधिक पसीना, त्वचा में खुजली, खांसी, सांस लेने में कठिनाई या पेट में दर्द शामिल हैं.

यदि हॉजकिंस लिंफोमा में अस्थि मज्जा शामिल है तो अरक्‍तता (एनीमिया) के कारण लक्षण या गुमटा, रक्तस्राव या संक्रमण जैसे लक्षण हो सकते हैं.

जब लिंफोमा का संदेह होता है, चाहे वह हॉजकिन हो या गैर-हॉजकिन लिंफोमा हो, सामान्‍यतया निम्नलिखित जांच की जाती है:

बायोप्‍सी

लिंफोमा की मौजूदगी की पुष्टि करने के लिए विवर्धित लसीका पर्व (लिम्फ नोड) की बायोप्सी की जाती है. यह या तो क्रोड बायोप्सी (एक लिम्फ नोड का क्रोड) या उच्‍छेदन बायोप्सी है जहां पूरे लिम्फ नोड को हटा दिया जाता है. एफएनएसी (FNAC) नामक एक अन्य प्रकार की बायोप्सी इस सेटिंग में नहीं की जाती है. इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री (IHC) मार्कर लिंफोमा के विशिष्‍ट प्रकार की पहचान करने के लिए बायोप्सी नमूने पर किए जाने वाले विशेष परीक्षण हैं. कभी-कभी, लिंफोमा के सही प्रकार को जानने और सही उपचार निर्धारित करने के लिए कई आईएचसी मार्करों का परीक्षण किया जाता है; यदि एक गांठ या द्रव्यमान एक लिम्फ नोड के लिए अलग-अलग मौजूद है, तो गांठ की बायोप्सी की जाती है. गुणसूत्रों में असामान्यताओं का पता लगाने के लिए आनुवंशिक परीक्षण कभी-कभी एक निश्चित प्रकार के लिंफोमा की उपस्थिति या अनुपस्थिति की पुष्टि करने के लिए किया जाता है.

सीटी स्‍कैन या पीईटी-सीटी स्‍कैन

लिंफोमा के फैलाव की मात्रा जानने के लिए सीटी स्कैन या पीईटी-सीटी स्कैन एक आदर्श जॉंच है. स्कैन का उपयोग स्थिति की स्‍टेजिंग प्रक्रिया में मदद करने के लिए किया जाता है और यह जानकारी देगा कि शरीर में कैंसर कहां मौजूद है; लिंफोमा के निदान और स्‍टेज जानने के लिए पीईटी-सीटी स्कैन सीटी स्कैन से बेहतर होता है. कैंसर उपचार पर कितना अनुक्रियाशील है, इसकी जांच करने के लिए ये स्कैन लिंफोमा के लिए कीमोथेरेपी वाले रोगियों में भी किये जाते हैं.

अस्‍थि मज्‍जा बायोप्‍सी

अस्थि मज्जा बायोप्सी में हड्डी के मज्जा से कोशिकाओं का एक नमूना लेना शामिल होता है. इस कैंसर के अस्थि मज्जा में फैलाव को देखने के लिए लिंफोमा में यह एक महत्वपूर्ण परीक्षण है. यह बायोप्सी स्थानीय असंवेदनता के तहत की जाती है. अस्थि मज्जा परीक्षण उन रोगियों में नहीं किया जा सकता है जहां एक पीईटी-सीटी स्कैन मज्जा में कोई बीमारी नहीं दर्शाता है.

रक्‍त परीक्षण

शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों का आकलन करने के लिए कई रक्त परीक्षण जैसे कि सीबीपी, ईएसआर, एलडीएच, लिवर फंक्शन टेस्ट, क्रिएटिनिन, इलेक्ट्रोलाइट्स और अन्य नियमित रूप से किये जाते हैं.

अन्य परीक्षण

अन्य परीक्षण जैसे एक्स रे, पेट का अल्ट्रासाउंड स्कैन, एमआरआई स्कैन का उपयोग कुछ स्थितियों में रोग के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए भी किया जा सकता है. कुछ स्थितियों में कटि-वेधन किया जाता है जिसमें तरल पदार्थ का एक नमूना प्राप्त करने के लिए एक सुई को रीढ़ में रखा जाता है.

स्‍टेज I

स्‍टेज 1 में, केवल एकल लसीका पर्व (लिम्फ नोड) क्षेत्र (I) या लिम्फ नोड के समावेशन के बिना एकल बहिलसवाहिका अंग या स्‍थल (IE) का समावेश होता है. एक एकल लसीका पर्व (लिम्फ नोड) क्षेत्र में एक नोड या आसन्न नोड्स का एक समूह शामिल हो सकता है.

स्‍टेज II

स्‍टेज 2 में, मध्यपट यानि डायाफ्राम (छाती और पेट को अलग करने वाली मांसपेशी) के एक ही तरफ दो या दो से अधिक लिम्फ नोड क्षेत्रों का समावेश होता है(II) या सीमित, सांसर्गिक अंग या ऊतक, जो लिम्फ नोड नहीं है, का समावेश होता है (IIE).

स्‍टेज III

स्‍टेज 3 में, डायाफ्राम की दोनों तरफ लसीका पर्व क्षेत्रों या लसीकाभ्र संरचनाओं का समावेश होता है.

स्‍टेज IV

स्‍टेज 4 में, इसमें सम्‍बद्ध लसवाहिका के समावेशन के साथ या के बिना अतिरिक्‍त गैर-सांसर्गिक बहिलसवाहिका का समावेश होता है.

सभी लिंफोमों को निम्न तीन लक्षणों में से एक या एक से अधिक की अनुपस्थिति (ए) या उपस्‍थिति (बी) को इंगित करने के लिए उपवर्गित किया जाता है : 101°F से अधिक अस्पष्ट बुखार, रात में पसीने, या निदान के छह महीने के दौरान शरीर के वजन 10 प्रतिशत से अनधिक अस्पष्टीकृत वजन कम होना. थकान, खुजली और अल्‍कोहल से प्रेरित दर्द को बी लक्षण नहीं माना जाता है, लेकिन ध्यान दिया जाना चाहिए.

हॉजकिन लिंफोमा का उपचार स्‍टेज, हॉजकिन लिंफोमा के उप-प्रकार, मरीज की आयु और सामान्य फिटनेस जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है.

प्रारंभिक चरण का हॉजकिन लिंफोमा

प्रारंभिक चरण के हॉजकिन लिंफोमा को कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के संयोजन के साथ इलाज किया जाता है. कीमोथेरेपी आमतौर पर एबीवीडी नामक उपचार के साथ होती है; यह डॉक्सोरूबिसिन, ब्लेओमाइसिन, विनब्लास्टिन और डकार्बाज़िन नामक 4 दवाओं का एक संयोजन है. यह नस में 2-4 चक्रों के लिए दिया जाता है, प्रत्येक चक्र 28 दिनों तक चलता है. 28 दिनों में, उपचार पहले दिन और 15वें दिन दो बार, दिया जाता है. इसके बाद रेडियोथेरेपी की जाती है. प्रारंभिक चरण के लिए रेडियोथेरेपी 2-3 सप्ताह तक दी जाती है.

उन्‍नत स्‍टेज का हॉजकिन लिंफोमा

उन्नत स्‍टेज के हॉजकिन लिंफोमा का इलाज मुख्य रूप से कीमोथेरेपी के साथ किया जाता है. आमतौर पर एबीवीडी उपचार का उपयोग 4 चक्रों के लिए किया जाता है. कभी-कभी, मरीज की स्थिति के आधार पर अन्य कीमोथेरेपी पथ्‍यापथ्‍य का उपयोग किया जाता है.

कीमोथेरेपी के पूरा होने के बाद समेकन उपचार के रूप में रेडियोथेरेपी का उपयोग कुछ सेटिंग्स में किया जाता है.

पुनरावर्ती या अननुसारी हॉजकिन लिंफोमा

प्रारंभिक उपचार से नियंत्रित होने के बाद जब यह बीमारी वापस आती है, तो इसे पुनरावर्ती रोग कहा जाता है. जब रोग प्रतिक्रिया नहीं करता है या केवल उपचार के लिए आंशिक रूप से प्रतिक्रिया करता है, तो इसे अननुसारी रोग कहा जाता है.

उन स्थितियों में जहां पुनरावर्ती या अननुसारी रोग होता है, एक अलग कीमोथेरेपी विकल्प का उपयोग किया जाता है और यदि मरीज शारीरिक रूप से फिट है, तो अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण पर विचार किया जाता है.

कीमोथेरपी

कीमोथेरेपी हॉजकिन लिंफोमा के उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस स्थिति में कीमोथेरेपी विभिन्न रूपों में दी जाती है. उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के उपचार नीचे सूचीबद्ध हैं. इनमें से कुछ पथ्‍यापथ्‍य नियमों का उपयोग पहली पंक्ति के उपचार के रूप में किया जाता है, जो कि निदान के समय होता है और अन्य का उपयोग तब किया जाता है जब लिंफोमा प्रारंभिक उपचार के बाद पुन: हो गया हो.

एबीवीडी (ABVD)

यह विशेष रूप से प्रारंभिक स्‍टेज की बीमारी में हॉजकिन लिंफोमा में इस्तेमाल की जाने वाली कीमोथेरेपी का एक सामान्य पथ्‍यापिय नियम है; एबीवीडी चार दवाओं का संक्षिप्‍त रूप है, एड्रियामाइसिन (डॉक्सोरूबिसिन), ब्लेओमाइसिन, विनब्लास्टीन और डकार्बाज़िन. यह उपचार चक्रों में दिया जाता है, प्रत्‍येक चक्र 28 दिनों का होता है. 28 दिनों में, उपचार पहले दिन और 14वें दिन को दिया जाता है. रोग के स्‍टेज के आधार पर 2-4 चक्र दिए जाते हैं.

स्‍टैनफोर्ड 5

यह एक अन्य प्रकार की कीमोथेरेपी है जिसका उपयोग मुख्य रूप से उच्च स्‍टेज के रोग में किया जाता है. इस पथ्‍यापथ्‍य में डॉक्सोरूबिसिन, विनब्लास्टीन, विन्क्रिस्टाइन, मस्टिन, इटोपोसाइड, ब्लेओमाइसिन और स्टेरॉयड सहित सात दवाएं शामिल हैं.

बीईएसीओपीपी(BEACOPP)

इस पथ्‍यापथ्‍य में ब्लेओमाइसिन, इटोपोसाइड, डोक्सोरूबिसिन, सायक्लोफॉसफामाइड, विन्क्रिस्टाइन, प्रोकार्बाज़िन और प्रेडनिसोलोन शामिल हैं.

ChlVPP

इस तरह की कीमोथेरेपी में क्लोरैम्बुसिल, विनब्लास्टीन, प्रोकार्बाज़िन और प्रेडनिसोलोन शामिल हैं.

जेमपी (GemP)

इस कीमोथेरेपी में जेमिसिटाबाइन, सिसप्लेटिन और प्रेडनिसोलोन शामिल हैं और इसका उपयोग उस बीमारी के इलाज के लिए किया जाता है जो पुनरावर्तित हुआ है.

ईएसएचएपी(ESHAP)

इस उपचार में सिसप्‍लेटिन, सिटारैबिन, इटोपोसाइड और प्रेडनिसोलोन शामिल हैं और इसका उपयोग उस बीमारी के इलाज के लिए किया जाता है जो कि पुनरावर्तित हुआ है.

बीम (BEAM)

इस उपचार में मस्टिन, इटोपोसाइड, साइटाराबिन और मेलफैलन शामिल होते हैं और स्टेम सेल प्रत्यारोपण से पहले इसका उपयोग किया जाता है.

कीमोथेरेपी के अनुषंगी प्रभाव (Side effects of chemotherapy)

लिंफोमा के लिए कीमोथेरेपी अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) से जुड़ी होती है. ये दी जाने वाली दवाओं पर निर्भर करते हैं. इनमें से कुछ अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) को दवाओं से अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है. कीमोथेरेपी की सहनशीलता एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है. कुछ लोग बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के बहुत अच्छी तरह से उपचार का सामना करते हैं, जबकि अन्य व्‍यक्‍तियों को अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) हो सकते हैं. सामान्‍य अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) हैं:

बाल झड़ना

यह उल्‍लिखित कीमोथेरेपी पथ्‍यापथ्‍य के साथ सामान्‍य है. बालों का झड़ना आमतौर पर पहले चक्र के दूसरे सप्ताह के बाद शुरू होता है. कीमोथेरेपी समाप्त होने के बाद बाल वापस उगते हैं.

मतली और उल्‍टी

यह कीमोथेरेपी का एक प्रसिद्ध साइड इफेक्ट है, लेकिन आधुनिक दवाओं के साथ, ये लक्षण बहुत अच्छी तरह से नियंत्रित होते हैं. मतली उल्टी जैसी संवेदना की अनुभूति है.

थकान

थकान एक सामान्‍य अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्‍ट) है. यह आमतौर पर पहले सप्ताह में अधिक होता है और फिर उसके बाद धीरे-धीरे सुधार होता है.

मुंह में छाले

यह कीमोथेरेपी के बाद आम है और खुद ठीक हो जाएगा.

पतली टट्टी

यह लक्षण कभी-कभी कीमोथेरेपी के बाद हो सकता है.

कब्‍ज

कब्ज कीमोथेरेपी का एक सामान्‍य अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्‍ट) है. यह स्वयं कीमोथेरेपी दवा के परिणामस्वरूप हो सकता है लेकिन मुख्य रूप से यह एंटी-उल्टी दवाओं के प्रभाव के कारण होता है जो कीमोथेरेपी के साथ दी जाती हैं. कीमोथेरेपी के पहले कुछ दिनों में कब्ज होता है.

संक्रमण का जोखिम

यह कीमोथेरेपी का एक महत्वपूर्ण अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्‍ट) है. ऐसा होता है क्योंकि कीमोथेरेपी से संक्रमण से लड़ने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है. इसलिए, कीमोथेरेपी के दौरान किसी भी समय (भले ही वह रात के मध्य में हो) बुखार होने पर अपने चिकित्सक से तत्काल संपर्क करना अत्‍यंत महत्वपूर्ण होता है.

स्‍वाद में परिवर्तन

यह कीमोथेरेपी के साथ आम है और इसलिए खाने में पहले की तरह स्‍वाद नहीं आएगा. कीमोथेरेपी समाप्त होने के बाद स्वाद ठीक हो जाएगा.

हाथ एवं पैरों में झुनझुनी

कुछ कीमोथेरेपी दवाएं यह अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्‍ट) उत्‍पन्‍न करती हैं.

अरक्‍तता (Anaemia)

यह कीमोथेरेपी के परिणामस्वरूप हो सकता है. आमतौर पर इसे सिर्फ देखा जा सकता है और उपचार खत्म होने के बाद इसमें सुधार होगा. इसे सुधारने के लिए कभी-कभी रक्त आधान (ट्रान्‍सफ्यूजन) या अन्य उपचार आवश्यक होता है.

रक्‍तस्राव

कीमोथेरेपी के साथ रक्तस्राव का एक छोटा जोखिम होता है. यदि ऐसा होता है, तो आपको अपने डॉक्टर से सीधे संपर्क करने की आवश्यकता है.

प्रजनन क्षमता में कमी

हॉजकिन लिंफोमा युवा लोगों में आम है और इसका एक संभावित दुष्प्रभाव पुरुष और महिलाओं में प्रजनन क्षमता का कम हो जाना है. कीमोथेरेपी के परिणामस्वरूप, एक महिला में अंडाशय का कार्य और पुरुष में शुक्राणु का उत्पादन कम हो सकता है. यह कार्य कीमोथेरेपी के पूरा होने के बाद ठीक हो सकता है लेकिन युवा रोगियों के लिए सलाह दी जाती है कि वे भविष्य में कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले विकल्पों पर चर्चा करने के लिए प्रजनन विशेषज्ञ से परामर्श करें. इस तरह के विकल्पों में पुरुष में शुक्राणु (शुक्राणु बैंकिंग) का भंडारण और महिला में डिम्‍बाणुजनकोशिका का परिरक्षण शामिल है.

रजोनिवृत्ति

वृद्ध वयस्कों में विशेष रूप से 40 के दशक के अंत या 50 की शुरुआत वाले वयस्‍कों में कीमोथेरेपी के बाद शीघ्र रजोनिवृत्ति का खतरा होता है क्योंकि कीमोथेरेपी पूरा होने के बाद अंडाशय का कार्य ठीक नहीं होता है.

खांसी और सांस फूलना

यह ब्लेओमाइसिन दवा के कारण एबीवीडी कीमोथेरेपी का एक संभावित अनुषंगी प्रभाव है. यह दवा फेफड़ों से संबंधित अनुषंगी प्रभाव जैसे खांसी और सांस की तकलीफ का कारण बन सकती है. यदि इस तरह के अनुषंगी प्रभाव होते हैं, तो डॉक्टर को शीघ्र सूचित किया जाना चाहिए.

रेडियोथेरेपी का उपयोग विभिन्न सेटिंग्स में हॉजकिन लिंफोमा में उपचार के रूप में किया जाता है.

प्रारंभिक चरण हॉजकिन लिंफोमा

प्रारंभिक चरण के लिंफोमा में, कीमोथेरेपी पूरी होने के बाद रेडियोथेरेपी का उपयोग किया जाता है. रेडियोथेरेपी लगभग 2-3 सप्ताह की अवधि के लिए दी जाती है और इस उपचार के अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्‍ट) कम से कम हैं. उपचार उस क्षेत्र को दिया जाता है जहां कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले लिंफोमा पाया गया था. हॉजकिन लिंफोमा में रेडियोथेरेपी के संभावित अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्‍ट) में थकावट, उपचारित क्षेत्र में त्वचा की हल्‍की लालिमा और उपचार किए जा रहे शरीर के क्षेत्र के आधार पर अन्य अनुषंगी प्रभाव शामिल हैं.

उन्‍नत स्‍टेज हॉजकिन लिंफोमा

उन्नत स्‍टेज हॉजकिन लिंफोमा में, रेडियोथेरेपी का उपयोग कभी-कभी कीमोथेरेपी के पूरा होने के बाद समेकन उपचार के रूप में किया जाता है. यह विशेष रूप से उन स्थितियों में उपयोग किया जाता है जहां निदान के समय लिंफोमा बड़ा था या कीमोथेरेपी पूरा होने के बाद लिंफोमा एक क्षेत्र में अब भी मौजूद है.

अन्य स्थितियों में, उन्नत रोग के मामले में, रेडियोथेरेपी का उपयोग दर्द आदि जैसे स्थानीय लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है.

अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण या स्टेम कोशिका प्रत्‍यारोपण हॉजकिन लिंफोमा में उस समय इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्रकार का उपचार है, जब कैंसर प्रारंभिक उपचार के बाद वापस आ जाता है (प्रत्‍यावर्तित हो जाता है) या प्रारंभिक कीमोथेरेपी से बीमारी ठीक नहीं हुई है.
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण करने से पहले, मरीज को कीमोथेरेपी की एक उच्च खुराक दी जाती है, उदाहरण के लिए, बीईएएम जैसी कीमोथेरेपी का एक पथ्‍यापथ्‍य. इस कीमोथेरेपी का उद्देश्य सभी लिंफोमा कोशिकाओं को मारना है. चूंकि इस कीमोथेरेपी की खुराक उच्च होती है, यह अस्थि मज्जा में मौजूद सामान्य कोशिकाओं को भी मारता है.

अस्थि मज्जा का कार्य सामान्य रूप से लाल रक्त कोशिकाओं जैसी रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करना है जो रक्त को ऑक्सीजन ले जाने में मदद करती हैं, सफेद रक्त कोशिकाएं जो संक्रमण और बिम्‍बाणुओं (प्लेटलेट्स) से बचाती हैं जिससे रक्तस्राव को रोकने में मदद मिलती है. रक्त में इन कोशिकाओं की महत्वपूर्ण कमी मरीज के लिए खतरनाक होती है और इसलिए कीमोथेरेपी की उच्च खुराक के बाद इन कोशिकाओं के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है.

स्‍टेम कोशिकाओं का संग्रहण

स्टेम कोशिकाएं एक प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं जिनमें किसी भी प्रकार की रक्त कोशिका जैसे लाल रक्त, सफेद रक्त कोशिका या बिम्‍बाणुओं (प्लेटलेट्स) में विकसित होने की क्षमता होती है. ये स्टेम कोशिकाएं रक्त प्रवाह और अस्थि मज्जा में मौजूद होती हैं और मरीज को उच्च खुराक कीमोथेरेपी प्राप्त करने से पहले शुरू में मरीज से एकत्र की जाती हैं. मरीज से स्टेम कोशिकाओं के संग्रहण और उच्च खुराक की कीमोथेरेपी के बाद उन्हें उसी मरीज में आधानित करने की इस प्रक्रिया को ऑटोलोगस स्टेम कोशिका प्रत्यारोपण कहा जाता है.
यदि स्टेम कोशिकाएं दूसरे व्यक्ति (दाता) से हैं, तो इसे अन्‍यजीनी स्टेम कोशिका प्रत्‍यारोपण कहा जाता है. दाता संबंधित हो सकता है, आमतौर पर भाई या बहन हो सकती है या असंबंधित हो सकता है, लेकिन अनुरूपी दाता होता है. दाता का उपयोग उन स्थितियों में किया जा सकता है जब मज्जा में कैंसर हो या पहले एक ऑटोलोगस प्रत्यारोपण किया गया था, लेकिन रोग फिर से प्रत्‍यावर्तित हो गया है.
स्टेम कोशिकाओं के संग्रहण से पहले, मरीज को कीमोथेरेपी और जी-सीएसएफ के साथ इंजेक्शन दिए जाते हैं जिनसे एक सफल संग्रहण प्राप्त करने के लिए रक्त में स्टेम कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होगी.

स्टेम कोशिकाओं के संग्रहण के दिन, मरीज को एक मशीन से जोड़ा जाता है और मरीज के रक्त को एक नस से निकाला जाता है और रक्त में मौजूद स्टेम कोशिकाओं को इकट्ठा करने के लिए इसे मशीन से गुजरा जाता है. रक्त फिर एक दूसरी नस के माध्यम से मरीज में वापस जाता है. यह प्रक्रिया कुछ घंटों में की जाती है.
स्टेम कोशिकाएं एकत्र कर लिए जाने के बाद, मरीज को कीमोथेरेपी की उच्च खुराक दी जाती है. कीमोथेरेपी के बाद, स्टेम कोशिकाओं को वापस मरीज में डाला जाता है. ये कोशिकाएं अस्थि मज्जा में जाती हैं और फिर से रक्त कोशिकाएं बनाने लगती हैं.

अस्थि मज्जा प्रत्‍यारोपण की तुलना में इन दिनों स्टेम कोशिका प्रत्‍यारोपण का ज्यादा इस्तेमाल होता है.

अस्‍थि मज्‍जा का संग्रहण

अस्थि मज्जा स्पंजी सामग्री होती है जो हड्डियों के अंदर मौजूद होती है. अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के लिए, कीमोथेरेपी की उच्च खुराक देने से पहले मज्जा को एकत्र करने की आवश्यकता होती है. मज्जा को इकट्ठा करने की प्रक्रिया सामान्य संज्ञाहरण (एनीस्‍थिसिया) के तहत आमतौर पर एक शल्‍य-क्रिया कक्ष में की जाती है. अस्थि-मज्‍जा हड्डियों में अलग-अलग स्थानों से निकाला जा सकता है और इसका लगभग 1 लीटर प्रक्रिया में निकाला जा सकता है. एक बार बाहर निकालने के बाद, इसे संग्रहित किया जाता है और जरूरत पड़ने पर मरीज में वापस डाला जाता है.

स्‍टेम कोशिका तथा अस्‍थि मज्‍जा के प्रत्‍यारोपण के जोखिम और अनुषंगी प्रभाव

स्टेम कोशिका या अस्‍थि मज्‍जा प्रत्‍यारोपण करवाना एक जटिल प्रक्रिया है और यह अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) से जुड़ी होती है. इस प्रक्रिया में आमतौर पर प्रत्यारोपण के बाद सामान्य स्तर तक ठीक होने के लिए मज्जा और रक्त में रक्त कोशिकाओं के लिए कुछ हफ्तों तक अस्पताल में रहना पड़ता है. इस प्रक्रिया से जुड़े सामान्‍य अनुषंगी प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) में निम्‍नलिखित शामिल हैं:

मतली, उल्टी, बालों का झड़ना, यकृत का परिवर्तित कार्य इस उपचार के संभावित अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) हैं.

संक्रमण का खतरा क्‍योंकि सफेद रक्त कोशिकाएं निम्‍न होती हैं और मरीज को संक्रमण होने का खतरा होता है. संक्रमण जीवाणु, वायरल या फंगल हो सकता है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होगी.

मुंह के अंदरूनी परत और पाचन तंत्र पर कीमोथेरेपी के प्रभाव के कारण म्यूकोसाइटिस होता है. यह मरीज द्वारा लिए जाने वाले भोजन की मात्रा को सीमित कर सकता है और ऐसे मामले में संभरण (फीडिंग) के अन्य तरीकों का उपयोग किया जा सकता है.

रक्‍तस्राव प्लेटलेट काउंट कम होने के कारण इस प्रक्रिया से जुड़ा जोखिम है, लेकिन प्लेटलेट काउंट को उच्‍च रखने के लिए प्लेटलेट आधान (ट्रांसफ्यूजन) दिया जा सकता है;

निरोप बनाम परिपोषी रोग : यह रक्‍त-आधानित कोशिकाओं के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया होती है, विशेषकर यदि अगर स्टेम कोशिकाएं या मज्जा दाता से प्राप्‍त हैं.