रैबडोमायोसरकोमा

रैबडोमायोसरकोमा

सरकोमा एक कैंसर है जो शरीर के संयोजी ऊतकों में शुरू होता है। एक शिथिल ऊतक सरकोमा एक ऐसा कैंसर है, जो शरीर के नर्म संयोजी ऊतकों, जैसे कि वसा, मांसपेशियों, नसों, रक्त वाहिकाओं और रेशेदार ऊतकों से उत्पन्न होता है। चूंकि ये संरचनाएं पूरे शरीर में हर जगह पाई जाती हैं, इसलिए शिथिल ऊतक सारकोमा शरीर के किसी भी भाग से उत्पन्न हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यह बाहों और पैरों में होता है।

रैबडोमायोसरकोमा एक शिथिल ऊतक सारकोमा है, जो मुख्य रूप से बच्चों में होता है तथा यह बच्चों में होने वाले सभी शिथिल ऊतक सारकोमा में से लगभग 50% होता है। इनमें से ज्यादातर कैंसर 6 साल से कम उम्र के बच्चों में होते हैं। शरीर के वे सामान्य भाग, जहां ये ट्यूमर होते हैं, उनमें सिर और गर्दन के क्षेत्र, विशेषकर आंख के आस-पास, मूत्रमार्ग जैसे कि मूत्राशय तथा बाहरी अंग जैसे कि हाथ-पैर शामिल होते हैं। कई प्रकार के रैबडोमायोसरकोमा होते हैं, जैसे कि भ्रूण, स्क्लेरोज़िंग, बॉट्रीओइड और वायुकोशीय। इसमें से भ्रूण वाला सबसे आम है।

इस स्थिति के विकास के लिए जोखिम वाले कारकों में विरासत में मिली आनुवांशिक स्थितियां जैसे ली फ्रामेनी सिंड्रोम, कॉस्टेलो सिंड्रोम और बेकविथ-विडमेन सिंड्रोम शामिल हैं।

रैबडोमायोसरकोमा वाले संदेहास्पद रोगी में नैदानिक परीक्षणों में संदिग्ध गांठ की बायोप्सी और बायोप्सी नमूने पर आईएचसी शामिल हैं। इससे ठोस प्रमाण मिलता है। उसके बाद, अन्य आनुवंशिक परीक्षण जैसे कि फिश (स्वस्थानी संकरण में प्रतिदीप्ति) या आरटी-पीसीआर किया जाता है जो आगे के निदान में मदद करता है।
अन्य नैदानिक परीक्षणों में कैंसर को और शरीर के अन्य भागों में कैंसर के प्रसार को जानने के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन या पीईटी-सीटी स्कैन शामिल हैं। कौन-सा स्कैन करना है, यह शरीर में प्राथमिक ट्यूमर की जगह पर निर्भर करता है। रक्त परीक्षण और एक कटि पंचर भी किया जाता है।

रैबडोमायोसरकोमा की स्टेजिंग सीजी स्टेजिंग या टीएनएम स्टेजिंग के अनुसार किया जाता है। सीजी स्टेजिंग का विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है।

ग्रुप 1a ट्यूमर शरीर में एक एक क्षेत्र तक सीमित होता है, और पूरी तरह से निकाल दिया गया होता है।
ग्रुप 1b ट्यूमर शरीर में एक एक क्षेत्र तक सीमित होता है, लेकिन आस-पास बढ़ रहा होता है और पूरी तरह से निकाल दिया गया होता है।
ग्रुप 2a ट्यूमर शरीर में एक एक क्षेत्र तक सीमित होता है, और निकाल दिया गया होता है, लेकिन सूक्ष्म रोग अभी भी बने होते हैं।
ग्रुप 2b ट्यूमर लिम्फ नोडों के आस-पास फैला रहता है और इसे निकाल दिया गया रहता है लेकिन छोटे-छोटे रोग अभी भी बने रहते हैं।
ग्रुप 3a ट्यूमर स्थानीय रूप से या व्यापक रूप से बना हुआ रहता है और इसे ऑपरेशन से निकाल नहीं गया रहता है।
ग्रुप 3b ट्यूमर स्थानीय रूप से या व्यापक रूप से बना हुआ रहता है और व्यापक सर्जरी के बाद भी मुख्य रोग बचा रहता है।
ग्रुप 4 रोग उत्पत्ति क्षेत्र से बाहर फैल गया रहता है (मेटास्टैटिक)।

रैबडोमायोसरकोमा के उपचार में सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी का उपयोग शामिल है। आम तौर पर, विशेष रूप से प्रारंभिक अवस्था में अधिकांश रोगियों में यह कैंसर उपचार योग्य है यानी इसे ठीक किया जा सकता है। अगर जिस रोगी में यह किसी विशेष जगह पर ही है, तो इसे सर्जरी से निकाला जा सकता है, क्योंकि इसके लिए शल्य चिकित्सा उपचार का पहला विकल्प होगा। इसके बाद कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी की जाएगी। कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से इलाज के अवसरों में सुधार करने में मदद मिलेगी। गंभीर रोग वाले उन रोगियों में, जिनमें इसे शल्यचिकित्सा से हटाया नहीं जा सकता है या उन रोगियों में, जिनमें यह ऐसे स्थान पर होता है, जिसका ऑपरेशन करना जोखिम भरा होता है, ऐसे मामले में पहले कीमोथेरेपी की जाती है और फिर रेडियोथेरेपी और सर्जरी, यदि उस स्तर पर संभव हो तो।

कीमोथेरेपी दवाएं आमतौर पर विन्क्रिस्टाइन, डक्टिनोमाइसिन और साइक्लोफोस्फाइड हैं, जो तीन साप्ताहिक दी जाती हैं। अगर रेडियोथेरेपी का उपयोग किया जाता है, तो इसे दिन में एक बार 4 से 6 सप्ताह तक किया जाता है। जिन रोगियों में बीमारी की पुनरावृत्ति होती है, उनमें रोग को नियंत्रित करने के लिए मुख्य रूप से कीमोथेरेपी का उपयोग उपचार के रूप में किया जाता है।