शिथिल ऊतक सार्कोमा
सार्कोमा एक प्रकार का कैंसर है, जो शरीर के संयोजी ऊतकों में शुरू होता है। शिथिल ऊतक सार्कोमा एक प्रकार का कैंसर है, जो शरीर के मुलायम (शिथिल) ऊतकों, जैसे कि वसा कोशिकाओं, मांसपेशियों, नसों, रक्त वाहिकाओं और रेशेदार ऊतकों से उत्पन्न होता है। जैसा कि ये संरचनाएं शरीर में हर जगह मौजूद होती हैं, इसलिए शिथिल ऊतक सार्कोमा शरीर के सभी भागों से उत्पन्न हो सकता है, लेकिन यह आमतौर पर बाहों और पैरों में होता है।
सार्कोमा जिन कोशिकाओं से उत्पन्न होता है, उनके प्रकार के आधार पर इसके अलग-अलग नाम दिए गए हैं। वसा कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाले सार्कोमा को लिपोसार्कोमा, मांस पेशी से उत्पन्न होने वाले सार्कोमा को लेइमियोसार्कोमा, रक्त वाहिका से उत्पन्न होने वाले सार्कोमा को एंजियोसार्कोमा कहा जाता है। अन्य प्रकारों में सिनोवियल सार्कोमा, विघातक बाह्य तंत्रिका आच्छद ट्यूमर, डेस्मॉइड ट्यूमर और एकल रेशेदार ट्यूमर शामिल हैं।

शिथिल ऊतक सार्कोमा बच्चों, किशोरों और युवाओं में हो सकता है, लेकिन 30 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह अधिक आम है।
हड्डियों से उत्पन्न सर्कोमा पर अलग से चर्चा की गई है। नीचे के चित्र में पैर में हुए शिथिल ऊतक सार्कोमा को दर्शाया गया है।
उम्र
किसी भी कैंसर में, शिथिल ऊतक सार्कोमा के विकास में उम्र एक जोखिम कारक है। सार्कोमा 60 से अधिक उम्र के लोगों में अधिक आम है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है।
आनुवंशिक स्थितियां
छोटी संख्या में शिथिल ऊतक सार्कोमा उन मरीजों में उत्पन्न होते हैं, जिनमें आनुवांशिक स्थितियां, जैसे कि ली फ्रामेनी सिंड्रोम, न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, गार्डनर सिंड्रोम होते हैं। इन सिंड्रोम वाले सभी व्यक्तियों में शिथिल ऊतक सार्कोमा विकसित नहीं होता, लेकिन इनमें इसके होने के अधिक चांस होते हैं।
पिछली रेडियोथेरेपी
पूर्व में रेडियोथेरेपी से किए गए उपचार से शिथिल ऊतक सार्कोमा के विकास की जोखिम अधिक होती है। यह जोखिम छोटी है, जो आमतौर पर रेडियोथेरेपी उपचार के बाद 5-10 वर्षों तक बनी रहती है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह जोखिम रेडियोथेरेपी वाले मरीजों में छोटी होती है और इसलिए दिए जाने वाली रेडियोथेरेपी के लाभ के प्रति संतुलित होनी चाहिए।
पिछली कीमोथेरेपी
पूर्व में की गई कीमोथेरेपी से शिथिल ऊतक सार्कोमा के होने का जोखिम थोड़ा बढ़ जाता है। फिर से वही बात, यह जोखिम छोटा है और इस कारण से किसी कीमोथेरेपी कराए व्यक्ति को इससे डराना नहीं चाहिए तथा ऐसे उपचार पर विचार करते समय लाभ और हानि में संतुलन पर ध्यान देना चाहिए।
रसायन
डाइऑक्सिन, कीटनाशक, विनाइल क्लोराइड जैसे रसायनों के संपर्क में आने से शिथिल ऊतक सार्कोमा के होने का खतरा बढ़ जाता है।
एक शिथिल ऊतक सार्कोमा में, जब यह प्रारंभिक यानी छोटे स्तर पर होता है, तो किसी लक्षण का पता नहीं चलता, लेकिन जैसे ही इसके आकार में वृद्धि होती है, यह लक्षण प्रकट करने लगता है। इस तरह के ट्यूमर से जुड़े सामान्य लक्षणों में शामिल हैं –
गांठ (सूजन)
आकार में बढ़ने वाली गांठ को महसूस करना या देखना, शिथिल ऊतक सार्कोमा का एक सामान्य लक्षण है। यह गांठ दर्द रहित या दर्द करने वाली हो सकती है और धीरे-धीरे या तेजी से आकार में बढ़ सकती है।
शरीर पर होने वाली अधिकांश गांठें (सूजन) सार्कोमा नहीं होतीं, लेकिन यदि गांठें बड़ी हैं और दर्द कर रही हैं, तो सार्कोमा हो सकता है। पेट में होने वाले सार्कोमा का पता चले, उससे पहले ये बढ़ सकते हैं।
अन्य लक्षण
सार्कोमा ट्यूमर के कारण दर्द जैसे लक्षण पैदा कर सकते हैं या ट्यूमर तंत्रिका जैसी दूसरी संरचना को संकुचित कर सकता है। पेट के सार्कोमा से पेट दर्द, कब्ज या दस्त जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं। फेफड़ों में मौजूद सार्कोमा से खांसी हो सकती है और सांस फूल सकती है। गर्भ में हुए सार्कोमा से योनि से रक्तस्राव हो सकता है। बढ़े हुए सार्कोमा वाले मरीजों में थकान, भूख न लगना और वजन कम होना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
शिथिल ऊतक सार्कोमा की उपस्थिति को जानने और उसकी पुष्टि के लिए कई परीक्षण (जांचें) किए जाते हैं। जब किसी मरीज में गांठ दिखाई देती है, तो सार्कोमा का आकलन करने के लिए निम्न परीक्षण किए जाते हैं। इन परीक्षणों से पहले डॉक्टर द्वारा गहन परीक्षण और नियमित रक्त परीक्षण किए जाते हैं।
अल्ट्रासाउंड स्कैन
एक अल्ट्रासाउंड स्कैन, आमतौर पर शुरुआती परीक्षण होता है, जो हुए गांठ का आकलन (परीक्षण) करने के लिए किया जाता है। स्कैन से गांठ के आकार, उसकी जगह और गांठ के उत्पन्न होने की संभावित जगह का पता चल जाता है। कुछ स्थितियों में, डॉक्टर अल्ट्रासाउंड स्कैन किए बिना सीधे सीटी या एमआरआई स्कैन कराने का सुझाव दे सकते हैं।
एमआरआई स्कैन
गांठ की प्रकृति का पता लगाने के लिए एमआरआई स्कैन एक बहुत ही महत्वपूर्ण जांच है। यह अंगों, सिर और शरीर के भागों में हुए सार्कोमा का आकलन करने में सीटी स्कैन की तुलना में अधिक संवेदनशील है तथा सार्कोमा के आकलन के लिए यह एक अधिक पसंद की जाने वाली जांच है। सार्कोमा की मूल जगह और इसके बारे में जानने के लिए एमआरआई स्कैन किया जाता है। सूजन, वृद्धि या गांठ का पता लगाने में मदद करने के लिए ऐसी स्थिति में एमआरआई स्कैन सबसे अच्छी जांच है, जिससे यह पता चलता है कि गांठ कैंसर है या नहीं।
सीटी स्कैन
सार्कोमा का संदेह होने पर गांठ के आकलन या जांच के लिए सीटी स्कैन भी किया जा सकता है। अगर एमआरआई उपलब्ध नहीं है, तो ऐसी स्थिति में या लीवर, फेंफड़े आदि जैसे अंगों में उत्पन्न होने वाले शिथिल ऊतक सार्कोमा को जानने के लिए एमआरआई से अधिक उपयोगी सीटी स्कैन होता है। या तो केवल सीटी स्कैन किया जाता है या इसे पेट (PET) के साथ पूरे शरीर का किया जाता है, ताकि अगर कैंसर अन्य भागों में फैला हो, तो उसका पता चल सके।
पेट (PET)/सीटी स्कैन
शिथिल ऊतक सार्कोमा की जांच के लिए पेट (PET)/सीटी स्कैन का उपयोग नियमित रूप से नहीं किया जाता है। पेट (PET)/सीटी स्कैन कुछ सार्कोमा की जांच के लिए अच्छे होते हैं, लेकिन सभी के लिए नहीं, इसलिए इन्हें नियमित रूप से नहीं किया जाता है। यह परीक्षण चुनिंदा स्थितियों में अधिक उपयोगी होता है, जैसे कि सार्कोमा के फिर से होने की जांच के लिए या कभी-कभार उपचार के फायदे आदि के आकलन के लिए।
बायोप्सी
गांठ या वृद्धि की प्रकृति को जानने के लिए आमतौर पर एक कोर बायोप्सी की जाती है। कोर बायोप्सी में एक सुई की मदद से गांठ का एक छोटा टुकड़ा लेकर इसे सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता है। बायोप्सी के बाद एक पूर्ण निदान किया जाता है। अक्सर, द्रव्यमान की सटीक प्रकृति को निर्धारित करने के लिए बायोप्सीड सामग्री के विशेष स्टैनिंग की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में उपचार के लिए संदिग्ध शिथिल ऊतक सार्कोमा की बायोप्सी बहुत ही सावधानीपूर्वक और एक अनुभवी विशेषज्ञ डाक्टर द्वारा की जानी चाहिए। इस प्रक्रिया के लिए एक सही स्थान का चयन किया जाना चाहिए ताकि अगर सार्कोमा का पता चलता है, तो बाद में ऑपरेशन के समय उस क्षेत्र को निकाल दिया जाए। गलत जगह से बायोप्सी करने पर भावी शल्य-क्रियाएं और जटिल और गंभीर हो सकती हैं।
यदि गांठ छोटी है, तो एक एक्सिशन बायोप्सी करके पूरी गांठ या वृद्धि को निकाल देते हैं और सूक्ष्मदर्शी से देखते हुए इसका निदान किया जाता है।
कैंसर का स्टेज एक ऐसा पद है, जिसका उपयोग शरीर में कैंसर के आकार और उसकी जगह को बताने के लिए किया जाता है। कैंसर के स्टेज को जानने से डॉक्टरों को सबसे उपयुक्त उपचार के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलती है। शिथिल ऊतक सार्कोमा को TNM स्टेजिंग सिस्टम या नंबर सिस्टम के आधार पर स्टेज किया जाता है।
सिस्टम के साथ या ऐसे की जाने वाली स्टेजिंग ट्यूमर के आकार और विस्तार तथा लिम्फ नोड्स में या शरीर के अन्य भागों में कैंसर के फैले होने पर आधारित होती है।
TNM
ट्यूमर, नोड और मेटास्टेस के लिए प्रयुक्त होता है। ‘T’ ट्यूमर के लिए तथा ‘N’ नोडों और नोडों में फैले कैंसर के लिए प्रयुक्त होता है। ‘M’ मेटास्टेस के लिए प्रयुक्त होता है और यह शरीर के दूर-दूर स्थित भागों में कैंसर के फैलने को बताता है।
TNM स्टेजिंग
T स्टेज
T1
– इसमें कैंसर आकार में 5 सेमी या उससे कम होता है। अगर कैंसर सतही है तो इसे T1a में और अगर यह ऊतकों में गहराई तक फैला है, तो इसे T1b में वर्गीकृत किया जाता है।
T2
– इसमें कैंसर आकार में 5 सेमी से अधिक होता है और इसे सतही T2a और गहरा T2b में वर्गीकृत किया जाता है।
N स्टेज
N0
– कैंसर में लिम्फ नोडों की कोई भागीदारी नहीं होती है।
N1
– कैंसर आसपास के लिम्फ नोडों में फैल गया होता है।
M स्टेज
M0
– इसमें कैंसर शरीर के दूर के हिस्सों में नहीं फैला होता है।
M1
– इसमें कैंसर शरीर के दूर के हिस्सों में फैला होता है।
कैंसर का ग्रेड
सूक्ष्मदर्शी से देखकर कैंसर का ग्रेड निर्धारित किया जाता है। जब यह मूल भाग के मूल कोशिका के सदृश्य होता है, तो इसे ग्रेड 1 कहा जाता है और इसे ग्रेड 1 में वर्गीकृत भी किया जाता है, जबकि अगर कैंसर कोशिकाएं मूल कोशिका से एकदम भिन्न होती हैं तो इन्हें ग्रेड 3 में या खराब रूप से विभेदित किया जाता है। ग्रेड 2 या मध्यम रूप से विभेदित कैंसर को ग्रेड1 और ग्रेड2 के बीच वर्गीकृत किया गया है।
रोग की पहचान के समय कैंसर के स्टेज के आधार पर शिथिल ऊतक सार्कोमा का इलाज किया जाता है। उपचार के विकल्पों में सर्जिकल रिसेक्शन, रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी शामिल हैं।
सर्जिकल रिसेक्शन
सर्जिकल रिसेक्शन में सार्कोमा को सर्जिकल तरीके से निकालना शामिल है। इस तरह से किया गया ऑपरेशन वाइड एक्सिशन हो सकता है, जिसमें ट्यूमर के आसपास की जगह के आम हिस्से के साथ ट्यूमर को हटा दिया जाता है। ऊतक का भी हिस्सा निकाला जाता है, जिससे ट्यूमर का पूरी तरह से निकाला जाना पक्का हो जाता है।
जब हाथ या पैर की तरह किसी अंग में वाइड एक्सिशन किया जाता है, तो इसे लिंब स्पेयरिंग सर्जरी भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें पूरे अंग को हटाया नहीं जाता है।
अधिकतर मरीजों में वाइड एक्सिशन हो सकता है। हालांकि, उन मरीजों में, जिनमें ये नहीं हो सकता, उनमें ट्यूमर को हटाने के लिए अंग को निकालना जरूरी हो सकता है। अंग के विच्छेदन में पूरे अंग को हटाना शामिल है।
कैंसर को हटाने के बाद, निकाले गए ऊतक को दूसरे ऊतकों जैसे मांसपेशियों, हड्डी आदि या एक नकली अंग के साथ बदलने के लिए पुनर्निर्माण ऑपरेशन की जरूरत हो सकती है।
शिथिल ऊतक सार्कोमा वाले अधिकतर मरीजों में, सर्जिकल रिसेक्शन ही दूसरों द्वारा अपनाया जाने वाला पहला उपचार विकल्प है। हालांकि, कुछ हालातों में जब ऑपरेशन नहीं हो सकता, तो रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है, और उसके बाद सर्जरी की जाती है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल पेट में बढ़ रहे सार्कोमा में अधिक किया जाता है।
यदि अंग निकाले जाने की जरूरत होती है, तो उस अंग के कार्य को जारी रखने के लिए एक नकली अंग लगाया जा सकता है।
एक कृत्रिम अंग एक नकली अंग या जोड़ या कोई दूसरी बनावट है, जो निकाले गए अंग या शल्य चिकित्सा में हटाए गए शरीर के किसी अंग को फिर से काम करने लायक बनाता है। अंग निकालने वाले डॉक्टर पहले नकली अंग के चयन पर चर्चा करते हैं और फिर अंतिम रूप देते हैं।
कभी-कभी ऑपरेशन अधिक बढ़े हुए सार्कोमा के मरीजों में किया जा सकता है, जो अपने मूल स्थान से शरीर के दूसरे भागों में फैल गया हो। आम तौर पर यह उन मरीजों में होता है, जिनमें फैलाव एक या दो हिस्सों तक ही होता है और इससे ज्यादा बढ़ने वाला नहीं होता। शिथिल ऊतक सार्कोमा के ऑपरेशन के बाद, विशेष रूप से हाथ या पैर जैसे अंग की सर्जरी के बाद, ऑपरेशन किए गए उस अंग के सबसे अच्छे तरीके से काम कर पाने के लिए पुनर्सुधार या फिजियोथेरेपी जरूरी है।


रेडियोथेरेपी
रेडियोथेरेपी आमतौर पर शिथिल ऊतक सार्कोमा के मरीजों में इलाज़ के तरीके के जैसे ही इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल सहायक इलाज़ के जैसे किया जाता है, मतलब यह ऑपरेशन जैसे जरूरी इलाज़ के बाद दिया जाता है। उपचार उस हिस्से का किया जाता है, जहां ऑपरेशन से पहले ट्यूमर था। इस हालत में सहायक रेडियोथेरेपी का लक्ष्य उस हिस्से में अभी भी मौजूद अभी भी बचे हुए हर एक कैंसर कोशिकाओं को मारना है। आमतौर पर इस विधि में दी जाने वाली रेडियोथेरेपी 6-7 सप्ताह (30-33 उपचार) के लिए होती है, जिसमें सप्ताह में 5 दिन उपचार दिया जाता है। रेडियोथेरेपी ऊंचे दर्जे और मध्यम दर्जे सार्कोमा के साथ-साथ कुछ छोटे दर्जे के सार्कोमा के मरीजों के लिए दी जाती है।
कुछ मरीजों में, जरूरी ऑपरेशन से पहले रेडियोथेरेपी दी जाती है। इस विधि को नव सहायक रेडियोथेरेपी कहा जाता है। इस तरह का इलाज़ पेट की सार्कोमा के लिए किया जाता है या दूसरी जगहों के सार्कोमा, जो ऑपरेशन से हटाने के लिए बड़े और कठिन होते हैं तथा जो रेडियोथेरेपी के बाद आकार में सिकुड़ जाने पर निकाल दिए जाते हैं।
रेडियोथेरेपी की अलग-अलग तकनीकों का उपयोग सार्कोमा के इलाज़ में किया जा सकता है। 3D-सीआरटी, आईएमआरटी, आईजीआरटी और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। रेडियोथेरेपी के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कृपया कैंसर संबंधी अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों को रेडियोथेरेपी के अनुभाग में देखें। शिथिल ऊतक सार्कोमा में रेडियोथेरेपी के दुष्प्रभाव में थकावट, त्वचा की लाली, त्वचा में दर्द, जोड़ों की कठोरता शामिल हैं अगर वे इलाज़ वाले हिस्से में हैं। कुछ मरीजों में अंगों की सूजन लंबे समय तक बनी रह सकती है।
पेट की रेडियोथेरेपी पेट की परेशानी या दर्द, दस्त, कब्ज जैसे बुरे असर का कारण बन सकती है।
कीमोथेरपी
कीमोथेरेपी का उपयोग अन्य कैंसर की तुलना में शिथिल ऊतक सार्कोमा के मरीजों में कम किया जाता है क्योंकि अधिकतर प्रकार के शिथिल ऊतक सार्कोमा में इसका लाभ एक हद तक ही होता है। कीमोथेरेपी का उपयोग रॅबडोमायोसार्कोमा, लाइपोसार्कोमा और सिनोवियल सार्कोमा जैसे हालातों में किया जाता है जहां कीमोथेरेपी का ट्यूमर पर बेहतर असर होता है।
जरूरी ऑपरेशन से पहले की जाने वाली कीमोथेरेपी को नव सहायक कीमोथेरेपी कहा जाता है। इस तरीके का इस्तेमाल उस बड़े ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए किया जाता है, जिसे सीधे निकालना मुश्किल होता है। जरूरी ऑपरेशन या रेडियोथेरेपी के बाद इस्तेमाल की जाने वाली कीमोथेरेपी को सहायक कीमोथेरेपी कहा जाता है और दोहराने के जोखिम को कम करने के लिए कुछ ही प्रकार के शिथिल ऊतक सार्कोमा में इसका उपयोग किया जाता है।
कीमोथेरेपी का इस्तेमाल आमतौर पर अधिक बड़े या मेटास्टेटिक रोग (स्टेज 4) वाले मरीजों में किया जाता है जिनका इलाज़ नहीं हो सकता है। यहां, कीमोथेरेपी का उद्देश्य कैंसर और लक्षणों को नियंत्रित करना और जीवन दर बढ़ाना है। इस विधि में इस्तेमाल की जाने वाली आम दवाओं में डॉक्सोरूबिसिन, इफोस्फामाइड, टैक्सनेस, जेमसिटाबाइन, ट्रेबेक्टेडिन और एरीबुलिन शामिल हैं। कीमोथेरेपी पर अधिक जानकारी के लिए, कैंसर पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों को कीमोथेरेपी के अनुभाग में देखें।
जैविक या टार्गेटेड इलाज़
जैविक या टार्गेटेड इलाज़ में उन दवाओं का उपयोग शामिल होता है, जो खास जगहों को या तो कैंसर कोशिकाओं पर या कैंसर को बढ़ने में मदद करने वाले तंत्र को टार्गेट करती हैं। शिथिल ऊतक सार्कोमा के उपचार के लिए कई तरह की जैविक दवाएं उपलब्ध हैं।
पाजोपानिब, इमैटिनिब, सुनीटिनिब, सिरोलिमस शिथिल ऊतक सार्कोमा में इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएं हैं। जैविक इलाज़ की अधिक जानकारी के लिए, कैंसर पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए जैविक चिकित्सा अनुभाग देखें।