थायरायड ग्रंथि

थायरायड ग्रंथि

थायरायड ग्रंथि गले में मौजूद एक अंतःस्रावी ग्रंथि है। एक अंतःस्रावी ग्रंथि वह ग्रंथि होती है, जो रक्त प्रवाह में सीधे हार्मोंनों को उत्पन्न और स्रावित करती है। शरीर में कई अंतःस्रावी ग्रंथियां होती हैं और थायरायड उनमें से एक है।

थायरायड ग्रंथि टेंटुए के नीचे गले के सामने मौजूद होती है। यह इस्थमस द्वारा बाएं और दाएं, दोनों पालियों पर जुड़कर बनी होती है।

थायरायड ग्रंथि एक हार्मोन पैदा करती है, जिसे थायरोक्सिन कहा जाता है। यह शरीर की सामान्य वृद्धि और विकास में मदद करता है।

थायरायड कैंसर

थायरायड कैंसर वह कैंसर है, जो थायरॉयड ग्रंथि में शुरू होता है। ग्लोबोकेन डेटा 2018 के अनुसार, भारत में 18688 थायरॉयड कैंसर के रोगी थे, जो सभी कैंसर का 1.6% हिस्सा था।

थायरायड कैंसर के प्रकार

थायरायड कैंसर कई प्रकार का हो सकता है। जिनकी सूची नीचे दी गई है।

पैपिलरी थायरायड कैंसर

यह थायरायड कैंसर का अब तक का सबसे आम रूप है, जो सभी थायरायड कैंसर का लगभग 60% है। यह कैंसर महिलाओं में अधिक आम है। आमतौर पर यह कम उम्र में पहचान में आ जाता है और धीरे-धीरे बढ़ने वाला होता है।

कूपिक थायराइड कैंसर

यह थायरायड कैंसर का दूसरा सबसे आम रूप है, जो सभी थायरायड कैंसर का लगभग 15% है। इस तरह का कैंसर भी जवान और अधेड़ लोगों में आम है। एक साथ होने वाले कूपिक और पैपिलरी कैंसरों को विभेदित कैंसर के रूप में जाना जाता है। इन विभेदित कैंसरों में से अधिकतर के इलाज हो जाते हैं।

मेडुलरी कार्सिनोमा

इस प्रकार का थायराइड कैंसर सभी थायराइड कैंसर का लगभग 5-10% है। इनमें से लगभग एक चौथाई परिवार से विरासत में मिले दोषी जीन के कारण होते हैं। इस हालत को एम.ई.एन. 2 सिंड्रोम कहा जाता है और इस सिंड्रोम के लिए थायरायड के मेडुलरी कैंसर के पहचान वाले सभी रोगियों का टेस्ट किया जाना चाहिए।

एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा

यह थायराइड कैंसर का एक असामान्य प्रकार है। यह आमतौर पर बुजुर्गों में दिखाई देता है और काफी तेजी से बढ़ सकता है।

थायराइड का नॉन-हॉजकिन लिम्फोमा

यह थायराइड कैंसर का एक दुर्लभ प्रकार है। गैर-हॉजकिन का लिंफोमा लिम्फ नोडों और लसीका प्रणाली में उत्पन्न होने वाला एक कैंसर है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में विकसित हो सकता है। यह कभी-कभी थायरॉयड में शुरू होता है।

थायराइड कैंसर के विकास के लिए संभावित जोखिम कारक नीचे दिए गए हैं।

सुदम्‍य थायराइड की स्थितियां

जिन लोगों में सुदम्य (कैंसर रहित) थायराइड की स्थितियां पाई जाती हैं, उनमें थायरॉयड कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। ये सुदम्य स्थितियां थायरॉइडाइटिस (थायरॉयड की सूजन और जलन), कंठमाला (थायरॉयड की सूजन) या एक सुदम्य गांठ हो सकती हैं। अगर सुदम्य थायराइड रोग का पारिवारिक इतिहास है, तो थायराइड कैंसर के विकास का खतरा और बढ़ सकता है।

विकिरण के संपर्क में आना

अगर कभी पहले गरदन विकिरण के संपर्क में आया हो, तो थायराइड कैंसर के विकास का खतरा बढ़ जाता है। बचपन में गरदन के भाग में कहीं रेडियोथेरेपी से कैंसर का उपचार किया गया हो, तो यह जोखिम कारक हो सकता है। परमाणु घटनाओं के चलते विकिरण के संपर्क में आने से भी जोखिम बढ़ जाता है।

आनुवंशिक कारण

विरासत में मिली दोषपूर्ण आरईटी जीन से एमईएन (MEN) 2 सिंड्रोम जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। इस सिंड्रोम में, थायराइड के साथ ही अन्य प्रकार के कैंसरों के विकास का भी खतरा होता है।

आहार में आयोडीन की कमी

आहार में आयोडीन की कमी से भी थायराइड कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। भारत में आयोडीन युक्त नमक के सेवन से आयोडीन की कमी को दूर करने में कुछ हद तक सफलता मिली है। बटर, गोश्त और अन्य वसा से भरपूर आहार लेने से थायराइड कैंसर की संभावना बढ़ती है।

थायराइड कैंसर का सबसे आम लक्षण गर्दन में दर्द रहित गांठ का होना है। यह गांठ धीरे-धीरे आकार में बढ़ती चली जाती है। तेजी से बढ़ती गर्दन की गांठ के साथ एक एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा आ जाता है।

कभी-कभी थायरॉयड कैंसर से श्‍वास-नली या ग्रासनली संकुचित हो सकती है, जिससे सांस फूलने लगती है या कुछ निगलने में परेशानीहो सकती है। इसके अन्य लक्षणों में खांसी होना या आवाज में परिवर्तन शामिल है। शायद ही कभी, थायराइड कैंसर का पहला लक्षण उस कैंसर से आ सकता है, जो शरीर के अन्य भागों में फैला हो, जैसे कि खून की उलटी होना या दर्द होना। थायराइड कैंसर में कभी भी कोई लक्षण नहीं दिखता और थायरॉयड ग्रंथि में हुई एक सुदम्य गांठ का ऑपरेशन करने पर यह अप्रत्याशित रूप से दिख सकता है।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि थायरॉयड से उत्पन्न होने वाली अधिकांश गांठें सुदम्य गांठें होती हैं, न कि कैंसर। अनिवार्य रूप से यह सलाह दी जाती है कि अगर गरदन में कोई गांठ दिखती है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

थायराइड कैंसर होने के संदेह पर निम्न जांच की जाती है।

खून की जांच

आमतौर पर थायराइड फंक्शन (टी.एफ.टी.) की जांच के लिए खून की जांच की जाती है। इसमें किए जा सकने वाले दूसरे खून की जांचों में कैल्सीटोनिन स्तर, कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर शामिल होते हैं।

गले का अल्ट्रासाउंड स्कैन

थायरायड का अल्ट्रासाउंड स्कैन ग्रंथि का चित्र पाने के लिए ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल करता है। यह परीक्षण काफी अच्छे से बताता है कि क्या कोई गांठ है, और अगर है, तो क्या उसमें तरल है, जैसे कि सिस्ट में होता है, या ठोस रूप में है, जिसमें कोशिकाएं हैं। यह स्कैन गले पर कुछ जेल लगाकर और उस पर हस्तचालित प्रोब का इस्तेमाल करके किया जाता है। इस जांच में कुछ मिनट लगते हैं और इसमें दर्द नहीं होता है।

थायराइड एफ़.एन.ए.सी.

एफ.एन.ए.सी. या फाइन नीडिल एस्पीरेशन कोशिका विज्ञान एक टेस्ट है, जिसमें एक पतली सुई को कोशिकाओं का एक नमूना लेने के लिए एक संदेहास्पद गांठ या जगह में डाला जाता है। फिर असामान्यताओं को देखने के लिए एक माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) के तहत जांच की जाती है। थायरायड गांठ में, एफ.एन.ए.सी. यह बता सकता है कि गांठ के कैंसर होने की संभावना है या नहीं। आमतौर पर एफ.एन.ए.सी. की रिपोर्ट में 1 से 5 तक स्कोरिंग सिस्टम (Thy) शामिल होना चाहिए जिसमें 1 सुदम्य और 5 कैंसर होता है।

सी.टी. (कम्प्यूटरीकृत टोमोग्राफी) स्कैन

सी.टी. स्कैन एक परीक्षण है, जो शरीर की विस्तारित तस्वीरों को पाने के लिए एक्स-रे का इस्तेमाल करता है। जब थायराइड कैंसर का संदेह होता है या जांच की जाती है, तो कैंसर की पहचान करने और उसके फैलाव को जानने के लिए गले और छाती का सी.टी. स्कैन किया जाता है। इस स्कैन को करने में कुछ मिनट लगते हैं और इसमें दर्द नहीं होता है।

एम.आर.आई. (मैग्नेटिक रिजोनेन्स इमेजिंग) स्कैन

एम.आर.आई. स्कैन शरीर की अच्छी तस्वीर लेने के लिए चुंबकत्व का इस्तेमाल करता है। थायराइड कैंसर में, इसका उपयोग गले की तस्वीर लेने के लिए किया जाता है। इसमें कोई भी एक्स-रे शामिल नहीं है। जिन रोगियों में कुछ प्रकार के धातु प्रत्यारोपण या कार्डियक पेसमेकर लगे होते हैं, वे इस प्रकार के स्कैन नहीं करा सकते हैं। गले का एम.आर.आई. गले की बहुत विस्तार में तस्वीरें ले सकता है और इसे सी.टी. स्कैन की तुलना में बेहतर माना जाता है।

थायराइड आइसोटोप स्कैन

एक थायरॉयड रेडियोआइसोटोप स्कैन गले और शरीर के आसपास थायरायड ऊतक का पता लगाने में मदद करने के लिए रेडियोधर्मी आयोडीन की एक छोटी मात्रा का इस्तेमाल करता है। स्कैन करने में एक घंटे से कम का समय लगता है। सबसे पहले, रेडियोधर्मी आयोडीन को एक नस में सुई से लगाया जाता है। यह आयोडीन शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में थायरॉयड ऊतक द्वारा प्राथमिक रूप से लिया जाता है। थोड़े इंतजार के बाद, एक गामा कैमरे की मदद से एक स्कैन लिया जाता है जो सुई द्वारा लगाए गए पदार्थ को उठाता है।

पी.ई.टी. (पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी) स्कैन या पी.ई.टी.-सी.टी. स्कैन

पी.ई.टी.-सी.टी. स्कैन एक खास सी.टी. स्कैन है, जिसमें सी.टी. स्कैन से पहले 18 एफ.डी.जी. नाम के एक रेडियोधर्मी ट्रैसर को शरीर में इंजेक्ट (सुई द्वारा लगाया) किया जाता है। यह ट्रैसर शरीर के उन जगहों में रहता है, जहां ग्लूकोज की बहुत अधिक जरूरत होती है। जैसा कि कैंसर को जीवित रहने के लिए बहुत अधिक ग्लूकोज की जरूरत होती है, तो वे शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत अधिक ट्रैसर लेते हैं। तब कैंसर को स्कैन पर आसानी से देखा जा सकता है। थायराइड कैंसर में यह स्कैन कभी-कभी किया जाता है।

कैंसर का स्टेज एक पद है, जिसका उपयोग कैंसर के आकार और शरीर में कैंसर के होने की जगह को बताने के लिए किया जाता है। कैंसर के स्टेज का पता होने पर डॉक्टरों को सबसे उपयुक्त उपचार के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलती है।
टीएनएम प्रणाली (TNM सिस्टम) या संख्या प्रणाली (नंबर सिस्टम) का उपयोग करके थायराइड कैंसर के स्टेज का निर्धारण किया जाता है।

टीएनएम का मतलब ट्यूमर, नोड और मेटास्टेस होता है।

T (टी) स्टेजिंग

T1a ट्यूमर का आकार 1 सेमी या इससे छोटा है और यह थायरॉयड से बाहर वृद्धि नहीं किए रहता है।
T1B ट्यूमर का आकार 1 सेमी से बड़ा और 2 सेमी से छोटा है और यह थायरॉयड से बाहर वृद्धि नहीं किए रहता है।
T2 ट्यूमर का आकार 2 सेमी से बड़ा और 4 सेमी से छोटा होता है और यह थायरॉयड से बाहर वृद्धि नहीं किए रहता है।
T3 ट्यूमर का आकार 4 सेमी से बड़ा होता है या यह अभी-अभी थायरॉयड से बाहर वृद्धि करना शुरू किए रहता है।
T4a ट्यूमर किसी भी आकार का होता है और यह थायरायड के बाहर गरदन के आस-पास के भागों जैसे कि कंठ, श्‍वास-नली, ग्रासनली या कंठ की तंत्रिका तक पहुंच गया होता है।
T4B ट्यूमर किसी भी आकार का होता है तथा पास की रीढ़ या बड़ी रक्त वाहिकाओं में विकसित हो गया होता है।

एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर के लिए T (टी) स्टेजिंग

रोग-निदान के समय सभी एनाप्लास्टिक थायरॉयड कैंसर को T4 (टी4) कैंसर माना जाता है।

T4a ट्यूमर थायरायड के अंदर होता है।
T4b ट्यूमर थायरायड के बाहर बढ़ गया होता है।

थायराइड कैंसर के लिए N (एन) स्टेजिंग

Nx क्षेत्रीय लिम्फ नोडों का आकलन नहीं किया जा सकता है।
N0 कैंसर आस-पास के लिम्फ नोडों में नहीं फैला होता है।
N1a कैंसर थायरायड के आस-पास के लिम्फ नोडों में फैल गया होता है।
N1b कैंसर गर्दन या ऊपरी छाती में अन्य लिम्फ नोडों में फैल गया होता है।

M (एम) स्टेजिंग

M0 कैंसर के दूर के भागों में फैलने का कोई प्रमाण नहीं होता है।
M1 कैंसर शरीर के अन्य भागों जैसे कि दूर स्थित लिम्फ नोडों, अंगों और हड्डियों में फैल गया होता है।

संख्या (नंबर) स्टेजिंग

संख्या स्टेजिंग 1 से 4 तक है। इन स्टेजों को अलग-अलग टीएनएम स्टेजों को मिलाकर बनाया गया है।

45 वर्ष से कम उम्र के रोगियों में पैपिलरी या फॉलिक्युलर थायराइड कैंसर

स्टेज 1- कोई भी टी स्टेज, कोई भी एन स्टेज, M0

स्टेज 2- कोई भी टी स्टेज, कोई भी एन स्टेज, M1

45 वर्ष से अधिक उम्र के रोगियों में पैपिलरी या फॉलिक्युलर थायराइड कैंसर

स्टेज 1- T1 N0 M0

स्टेज 2- T2 N0 M0

स्टेज 3- T3 N0 M0
T1 से T3 N1a M0

स्टेज 4a- T4a, कोई भी N स्टेज, M0
T1 से T3, N1b, M0

स्टेज 4b- T4b, कोई भी N, M0
कोई भी T, कोई भी N, M1

मेडुलरी थायरायड कैंसर

स्टेज 1- T1 N0 M0

स्टेज- T2 N0 M0
T3 N0 M0

स्टेज 3- T1 से T3,N1a,M0

स्टेज 4a- T4a, कोई भी N, M0
T1 से T3, N1b, M0

स्टेज 4b- T4b, कोई भी N, M0
कोई भी T, कोई भी N, M1

एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर

सभी एनाप्लास्टिक थायरायड कैंसर को चरण 4 माना जाता है

स्टेज 4a- T4a, कोई भी N, M0

स्टेज 4b- T4B, कोई भी N, M0

स्टेज 4c- कोई भी T, कोई भी N, M0

थायराड कैंसर के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं। उन उपचारों में निम्न शामिल हैं-

  • थायरायड सर्जरी
  • रेडियोधर्मी आयोडीन उपचार
  • कीमोथेरपी
  • रेडियोथेरेपी
  • थायरायड हार्मोन प्रतिस्थापन

कृपया अधिक जानकारी के लिए प्रासंगिक खंड देखें।

शल्य-क्रिया द्वारा थायरॉयड ग्रंथि को निकालना थायरॉयड के पैपिलरी, कूपिक और मेडुलरी कार्सिनोमा के प्रबंधन में आमतौर पर पहली उपचार प्रक्रिया है। किया जाने वाला यह सर्जिकल ऑपरेशन थायरायड ग्रंथि में और ग्रंथि के बाहर मौजूद थायरायड कैंसर की सीमा पर निर्भर करता है। थायराइड सर्जरी सामान्य एनेस्थीसिया के तहत की जाती है और इसके लिए आमतौर पर अस्पताल में एक या दो दिन के लिए रोगी को भर्ती किया जाता है।

आंशिक थायराइडेक्टोमी

इस ऑपरेशन में थायरॉयड ग्रंथि के एक हिस्से या भाग को निकाल दिया जाता है। इसे आंशिक थायराइडेक्टोमी या लोबेक्टोमी या हेमिथायरॉइडोमी कहा जाता है। कुछ रोगियों में यह स्टेज 1 के पैपिलरी या कूपिक थायरॉयड कैंसर में किया जाता है।

पूर्ण थायराइडेक्टोमी

इस ऑपरेशन में पूरे थायरॉयड ग्रंथि को निकाल दिया जाता है। केवल पैराथायराइड ग्रंथियां जो थायरॉयड ग्रंथि के पीछे मौजूद हैं, वे ही रह जाती हैं। पूर्ण थायरॉयडेक्टॉमी के बाद, रोगी को जीवनभर थायराइड हार्मोन रिप्लेसमेंट लेने की जरूरत होती है। थायराइड कैंसर के अधिकतर रोगियों को पूर्ण थायरॉयडेक्टॉमी कराना पड़ता है।

लिम्फ नोड को निकालना

जब थायरॉयड ऑपरेशन हो जाता है, तो ज्यादातर मामलों में गले में मौजूद लिम्फ नोडों को निकाल दिया जाता है। केंद्रीय भाग (स्टेज 6) के लिम्फ नोड हमेशा निकाले जाते हैं। यदि गले के दूसरे हिस्सों के लिम्फ नोडों में कैंसर का संदेह है या उनमें यह फैल गया है, तो उन्हें भी निकाल दिया जाता है।

थायराइड ऑपरेशन की मुश्किलें या दुष्प्रभाव

तुलनात्मक रूप से देखें, तो थायरायड ऑपरेशन सुरक्षित ऑपरेशन है और इसे अक्सर किया जाता है। हालांकि, किसी भी तरह के ऑपरेशन में कुछ मुश्किलें हो सकती हैं, जिन्हें नीचे बताया गया है।

पैराथायराइड ग्रंथियों के नुकसान का खतरा

ऑपरेशन के समय पर, पैराथायरायड ग्रंथियों को नुकसान का खतरा होता है, जिससे खून में कम कैल्शियम के स्तर में कमी और कैल्शियम पूरकता की जरूरत बढ़ जाती है। ऑपरेशन के बाद इस खतरे पर नज़र रखनी चाहिए।

खून बहना

ऑपरेशन के बाद, उस जगह से खून बहने का खतरा होता है, और खून के बहाव को रोकने के लिए आपरेशन थिएटर में वापस ले जाने की जरूरत पड़ सकती है।

नस को नुकसान

ऑपरेशन के समय पर कंठ को जाने वाली नस के नुकसान का खतरा होता है। इससे आवाज बेसुरी हो सकती है। आमतौर पर बेसुरी आवाज अपने आप बेहतर हो जाती है। इन बुरे प्रभावों के होने का खतरा कम होता है और ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर इसके बारे में बहुत अच्छे से बताते हैं।

दूसरे ऑपरेशन

गले में बढ़ने रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए जहां सभी रोगों को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता है, वहां रोग के बड़े हिस्से को कम करने के लिए कभी-कभी डिबुलिंग ऑपरेशन भी किया जाता है जिसके बाद दूसरे इलाजों की कोशिश की जा सकती है।

ट्रेकियोस्टोमी एक ऐसा ऑपरेशन है, जिसमें थायराइड कैंसर की वजह से सांस की नली पर दबाव होता है जिससे रोगी को सांस लेने में मुश्किल होती है। इस ऑपरेशन में, थायराइड की सूजन के नीचे गले के निचले हिस्से में ट्रेकिआ में एक छोटा सा छेद बनाया जाता है, जिससे मरीज आसानी से सांस ले सकता है। छेद में एक ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब डाला जाता है।

रेडियोधर्मी आयोडीन पैपिलरी और कूपिक थायरायड कैंसर के लिए इस्तेमाल होने वाला एक आम इलाज़ है।
आम तौर पर थायरायड ग्रंथि को अपने कार्य संचालन के लिए आयोडीन की जरूरत होती है। थायरायड ग्रंथि द्वारा रक्त प्रवाह से आयोडीन लिया जाता है और थायरायड हार्मोन बनाया जाता है। रेडियोधर्मी रूप में दिए गए आयोडीन को थायरायड कोशिकाएं और विभेदित थायरायड कैंसर कोशिकाएं लेती है। लिया गया रेडियोधर्मी आयोडीन उसी जगह पर रेडिएशन फेंकता है और कैंसर कोशिकाओं को मारता है, और यह शरीर के अन्य भागों पर कोई असर नहीं डालता। आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रेडियोधर्मी आयोडीन I-131 है।
किसी रोगी को रेडियोधर्मी आयोडीन पूर्ण थायरॉयडेक्टॉमी (थायराइड को निकालने) के बाद दिया जाता है। इसका इस्तेमाल थायरॉयड ऑपरेशन के बाद छूटे हुए छोटे-छोटे बचे रोगों को नष्ट करने के लिए किया जाता है। यह कुछ रोगियों में मौजूद किसी भी पूरी तरह से बचे हुए या मेटास्टेटिक रोग का इलाज करने में मदद करता है। जिन रोगियों में रेडियोधर्मी आयोडीन का उपयोग उपचार के रूप में किया जाता है, उनमें वे शामिल हैं, जिनमें पैपिलरी कैंसर का आकार 1 सेमी से अधिक है, कूपिक कैंसर का आकार 1 सेमी से अधिक है या जिनमें थायराइड या लिम्फ नोडों के कैप्सूल शामिल हैं।

इलाज़ से पहले

मुख्य रूप से रेडियोएक्टिव आयोडीन I131 कैप्सूल के रूप में दिया जाता है। इसे दूसरे रूपों में भी दिया जा सकता है। यह इलाज़ आमतौर पर अंतरंग रोगी को दिया जाता है। रेडियोधर्मी आयोडीन से इलाज़ कराने से पहले, रोगी को या तो कुछ हफ्तों के लिए थायराइड हार्मोन लेना बंद करना पड़ता है या इसके बजाय आर.-टी.एस.एच. नामक एक थायरायड उत्तेजक हार्मोन लेना पड़ता है। इनमें से कोई भी तरीका खून में टी.एस.एच. (थायराइड उत्तेजक हार्मोन) के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे रेडियोधर्मी इलाज़ बेहतर रूप से प्रभावी होता है।
इसके साथ ही, रोगी को इलाज़ से पहले दो सप्ताह तक कम आयोडीन वाला भोजन करने के लिए कहा जाता है। मछली और समुद्री भोजन, आयोडीन युक्त नमक, E127 जैसे खाद्य रंजक और दुग्ध उत्पादों के सेवन से बचना चाहिए।

अस्पताल में

रोगी अस्पताल में एक ही कमरे में रहेगा और अन्य रोगियों से अलग रखा जाएगा। यह कमरा मोटी दीवारों और लीड लाइन लगे दरवाजों वाला एक खास कमरा होता है, जो किसी भी रेडिएशन को कमरे के बाहर नहीं जाने देता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि रोगी को कुछ दिनों के लिए रेडियोधर्मी किया जाएगा और अलग कमरा होने से दूसरे लोग रेडिएशन के संपर्क में नहीं आएंगे। एक बार जब शरीर में रेडिएशन का स्तर सुरक्षित स्तर तक पहुंच जाता है, तो रोगी घर जा सकता है।

दुष्प्रभाव

रेडियोधर्मी आयोडीन के दुष्प्रभाव कम और हल्के होते हैं। कभी-कभी रोगी को मतली, दर्द या गर्दन में जकड़न या सांस लेने में तकलीफ महसूस हो सकती है। लंबे समय के लिए, कुछ रोगियों में मुंह के छाले पड़ सकते है। जवान पुरुषों में, प्रजनन क्षमता पर असर हो सकता है और इसलिए इलाज से पहले शुक्राणु भंडारण के बारे में सोचा जा सकता है।

इलाज़ के बाद

इलाज़ के बाद कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक, कोई रोग बचा तो नहीं, इसे देखने के लिए एक आयोडीन अपटेक स्कैन किया जाता है। यदि ऐसा रोग अभी भी मौजूद है, तो रेडियोधर्मी आयोडीन की खुराक फिर से दी जा सकती है। या फिर, रोगी को 10 साल तक बारीकी से परीक्षित किया जाता है।

रेडियोथेरेपी का उपयोग थायराइड कैंसर में किया जाता है, लेकिन रेडियोधर्मी आयोडीन से इसका उपयोग कम किया जाता है। यहां हम विशेष रूप से अलग-अलग थायरॉयड कैंसर जैसे कि पैपिलरी और फॉलिक्युलर कैंसर के बारे में बात करेंगे। इसमें उपयोग की जाने वाली रेडियोथेरेपी, एक प्रकार की बाहरी बीम रेडियोथेरेपी है, जिसे एक रैखिक त्वरक नामक मशीन की सहायता से दिया जाता है। इसे आमतौर पर लगभग 5-6 हप्तों तक हप्ते में 5 दिन रोज दिया जाता है।

आमतौर पर रेडियोथेरेपी का उपयोग उस कैंसर में किया जाता है, जो स्थानीय स्तर पर गंभीर होता है और वहां सर्जरी के बाद कुछ रोग बचे रह जाते हैं या वहां रोग में कई लिम्फ नोड शामिल होते हैं या जिसमें प्रारंभिक उपचार के बाद रोग फिर से वापस आ जाता है और दवाएं काम नहीं करतीं या रेडियोधर्मी आयोडीन भी काम नहीं करता। रेडियोथेरेपी का उपयोग उस स्थिति में भी किया जाता है, जब सर्जरी से रोग को दूर करना संभव नहीं होता है। रेडियोथेरेपी से उपचार किए जाने वाले क्षेत्र में आमतौर पर पूरी गर्दन और छाती का ऊपरी भाग शामिल होते हैं।

मेटास्टैटिक रोगियों में रेडियोथेरेपी का उपयोग दर्द या रक्तस्राव जैसे लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए तब किया जाता है, जब रोग हड्डियों या फेफड़ों आदि में फैल गया होता है। इसमें इन लक्षणों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से 1-10 दिनों तक उपचार किया जाता है।

सिस्टेमिक (दैहिक) में कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी और लक्षित चिकित्सा जैसी चीजों का उपयोग शामिल होता है। विभेदित थायरॉयड कैंसर में, प्रणालीगत चिकित्सा का उपयोग आम नहीं है। इसकी सिफारिश केवल मेटास्टेटिक थायरॉयड कैंसर में की जाती है, जिसमें कैंसर शरीर के विभिन्न भागों में फैल गया होता है तथा रेडियोधर्मी आयोडीन थेरेपी भी काम नहीं करती है।

मेटास्टेटिक थायरॉयड कैंसर वाले रोगियों में, म्यूटेशनों को देखने के लिए बायोप्सी नमूने पर आनुवंशिक परीक्षण किया जाता है। इन परीक्षणों से किस प्रकार का उपचार किया जाए, इसका निर्णय करने में मदद मिलती है।

बीआरएएफ (BRAF) म्यूटेशन वाले कैंसर का इलाज एंटी-एंजियोजेनिक टायरोसिन किनसे इनहिबिटरों जैसे कि लेनवेटिनिब आदि का उपयोग किया जाता है। सोराफेनीब, डाबरफेनीब और वेमुराफेनीब जैसी अन्य दवाओं का उपयोग भी किया जाता है।

कीमोथेरेपी के विकल्प शायद ही कभी उपयोग किए जाते हैं और ऐसी परिस्थिति में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में डॉक्सोरूबिसिन शामिल है।

थायरॉइड का मेडुलरी कार्सिनोमा एक न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर है, जो थायरॉयड ग्रंथि के पैराफॉलिकुलर कोशिकाओं से उत्पन्न होता है। इसका व्यवहार और उपचार एक विभेदित थायरॉयड कैंसर से अलग होता है। सभी मेडुलरी कार्सिनोमस का लगभग 20% MEN2 (एमईएन2) सिंड्रोम के हिस्से के भाग के रूप में उत्पन्न होता है।

लक्षण

यह कैंसर आमतौर पर गर्दन में एकल या एकाधिक गांठ के रूप में होता है। यह कैंसर आमतौर पर गर्दन में एकल या एकाधिक गांठ के रूप में प्रस्तुत करता है। कभी-कभी, शरीर के अन्य भागों में कैंसर के फैल जाने से, यह उन भागों से दिखने वाले लक्षणों के साथ मौजूद हो सकता है।

रोग-निर्णय

थायराइड के मेडुलरी कार्सिनोमा का रोग-निर्णय गर्दन की गांठ की महीन सुई एस्पिरेशन साइटोलॉजी (FNAC) पर किया जाता है। इसमें गांठ में एक पतली सुई को डालकर कोशिकाओं को महाप्राणित किया जाता है। फिर इसे रोगविज्ञानी द्वारा सूक्ष्मदर्शी से परीक्षित किया जाता है।
सीटी स्कैन या एमआरआई कैंसर के चरण को निर्धारित करने के लिए किया जाता है तथा इससे यह भी पता चलता है कि कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैला है कि नहीं। आम तौर पर रक्त परीक्षण जैसे कि कैल्सीटोनिन, सीईए, कैल्शियम और कैटेकोलामाइन सर्जरी से पहले किए जाते हैं।

उपचार

शल्य चिकित्सा (सर्जरी)

थायरॉयड के मेडुलरी कार्सिनोमा के उपचार में टोटल थायरॉयडेक्टॉमी (थायराइड को हटाना) शामिल है। सर्जरी के बाद, थायरॉयड प्रतिस्थापन हार्मोन तुरंत शुरू किया जाता है। आमतौर पर रक्त में कैल्सीटोनिन और सीईए स्तरों की निगरानी करते रहने की सलाह दी जाती है।

रेडियोथेरेपी

रेडियोथेरेपी का उपयोग कुछ ऐसे सेटिंग्स में किया जाता है, जब गर्दन या ऊपरी छाती में ट्यूमर का पूर्ण रूप से उच्छेदन संभव नहीं होता है। उपचार बाहरी बीम रेडियोथेरेपी के रूप में दिया जाता है और इसे लगभग 5 सप्ताह तक सप्ताह में पांच दिन दिया जाता है।

अन्य उपचार

मेटास्टैटिक रोग (शरीर के अन्य भागों में फैल रहा कैंसर) और निश्चित रूप से बढ़ते रोग से पीड़ित रोगियों के लिए टाइरोसिन किनसे अवरोधक कहे जाने वाले कैरोज़ैन्टिनिब और वांडेटेनिब जैसे नए एजेंटों का उपयोग किया जा सकता है। कीमोथेरेपी का उपयोग इस सेटिंग में भी किया जा सकता है, लेकिन इससे कम लाभ मिलता है। इस्तेमाल की जाने वाली कीमोथेरेपी दवाओं में डकारबाज़िन, साइक्लोफ़ोसामाइड और विन्क्रिस्टाइन शामिल हैं।

थायराइड का एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा थायराइड कैंसर का एक आक्रामक रूप है। यह आमतौर पर 60 वर्ष की उम्र के बाद बुजुर्ग लोगों में पता चलता है तथा सभी थायरॉयड कैंसर का लगभग 5% यह होता है। यह बहुत ही जल्दी वृद्धि करता है, इसलिए इसका उपचार अति शीघ्र शुरू करना चाहिए।

लक्षण

इस कैंसर के लिए सबसे आम लक्षण एक थायरॉयड पिंड है। इसमें गर्दन में दर्द, सांस फूलना, निगलने में कठिनाई, खांसी या आवाज में बदलाव जैसे अन्य लक्षण हो सकते हैं।
अन्य लक्षण शरीर के अन्य भागों में कैंसर के प्रसार को दिखा सकते हैं।

रोग-निर्णय

एफएनएसी (फाइन नीडिल महाप्राण कोशिका विज्ञान) या बायोप्सी की सहायता से इसका रोग-निर्णय किया जाता है।

एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर का उपचार

शल्य-चिकित्सा (सर्जरी)

यदि ट्यूमर थायरायड ग्रंथि तक सीमित रहता है, तो शल्य-क्रिया (सर्जरी) की जाती है। ऐसी परिस्थितियों में टोटल थायरॉयडेक्टॉमी की जाती है। हालांकि, ज्यादातर परिस्थितियों में, सर्जिकल अंग उच्छेदन का विकल्प नहीं होता, क्योंकि कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैल चुका होता है। यदि सर्जरी की जाती है, तो कैंसर नियंत्रण को पूरी तरह से कारगर बनाने के लिए सर्जरी के बाद रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी दी जाती है। रेडियोथेरेपी लगभग 5 हप्तों तक, हर हप्ते में 5 दिन रोज दी जाती है। कीमोथेरेपी के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं डॉक्सोरुबिसिन, टैक्सनेस और सिस्प्लैटिन हैं।

यदि ट्यूमर प्रचालनीय है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी साथ-साथ दी जाती है। उन रोगियों में जिनमें कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी साथ-साथ नहीं दी जा सकती, केवल रेडियोथेरेपी दी जाती है।