Patients as teachers

शिक्षक के रूप में रोगियों

पृत्वी राज जम्पना
पृत्वी राज जम्पना

ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर रोग विशेषज्ञ) का काम चुनौतीपूर्ण किंतु सम्मानजनक है। यह चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उपचार की दृष्टि से कैंसर एक जटिल और कठिन बीमारी है। डॉक्टर का काम न सिर्फ कैंसर से प्रभावित रोगियों के शारीरिक लक्षणों पर नज़र रखना और उपचार करना है बल्कि उसे मरीज के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, वित्तीय और मानसिक गतिशीलता का भी ध्यान रखना होता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, लोगों की परिस्थिति, संस्कृति, धर्म, मान्यता और भौगोलिक स्थिति के आधार पर इन कारकों का मरीजों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। ऑन्कोलॉजिस्ट या इलाज करने वाले किसी भी डॉक्टर के लिए महत्वपूर्ण है कि वह उपचार योजना तैयार करते समय और मरीज से संचार करते समय इन सभी कारकों को जल्द समझे और अपनाए।

कैंसर रोग विशेषज्ञ अपने मरीजों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। अधिकांश मरीजों का लंबे समय तक कठिन इलाज चलता है, और वे अपने डॉक्टरों की मदद से इन चरणों से गुजरते हैं। इस रोग की खबर हमेशा सकारात्मक नहीं होती और जब कोई बुरी खबर होती है तो उन्हें इससे एक साथ निपटना पड़ता है।

ऑन्कोलॉजिस्ट के रूप में अपनी यात्रा के दौरान, मैं कुछ शानदार लोगों से मिला हूँ। जिनमें साहस और जिजीविषा कूट-कूट कर भरी थी, जो कभी हार नहीं मानते थे। जो हर परिस्थिति में शांत रहते थे, जो तब भी खुद पर और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते थे जब उनके आसपास हर कोई डरा हुआ और बेचैन दिखता था। जो लोग हमेशा यही सोचते थे कि जिन स्थितियों से उन्हें गुजरना पड़ रहा है, उनसे दूसरे लोगों को न गुजरना पड़े या कभी सामना हो भी तो स्थितियाँ उनके लिए आसान बन जाएँ। ऐसा ही एक शख्स मुझे याद आ रहा है।

जेम्स (जिम) कॉस्टेलो के चेहरे पर बेसल सेल कार्सिनोमा नामक त्वचा कैंसर का पता चला था। यह कैंसर आम तौर पर त्वचा पर धीमी गति से बढ़ता है, यह आमतौर पर चेहरे या स्कैल्प पर होता है जिसका इलाज ऑपरेशन या रेडियोथेरपी के माध्यम से आसानी से किया जाता है। जहाँ तक मुझे याद है, सिर्फ 20 वर्ष की उम्र में ही जिम को यह कैंसर हो गया था। वह नजदीक के कैंसर सेंटर गए जहाँ रेडियोथेरपी से उनका इलाज हुआ। कुछ समय बाद, उनके चेहरे पर वैसा ही एक और कैंसर हुआ। डॉक्टरों को शक था कि यह असामान्य है, और परीक्षण करने के बाद उनमें गोर्लिन्स सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ सिंड्रोम का पता चला। जिन लोगों को यह सिंड्रोम होता है, उनमें अन्य बातों के अलावा बेसल सेल कार्सिनोमा का जोखिम अधिक होता है। इसके अलावा, यह सिंड्रोम परिवार में एक से दूसरे को होता है, और जिम को यह अपने पिता से मिला था। जब तक उसे इस बारे में पता चला, तब तक उसके तीन बच्चे हो चुके थे और वे सब भी इससे ग्रस्त हो चुके थे। और उसकी समस्या का यहीं अंत नहीं हुआ, जिम को अपने डॉक्टरों से पता चला कि इस आनुवंशिक स्थिति वाले लोगों में रेडियोथेरपी से कैंसर का खतरा और बढ़ जाता है। इसका मतलब था कि उसने कैंसर को नियंत्रित करने के लिए अपने चेहरे पर जो रेडियोथेरपी कराई थी, वह भविष्य में उसे और कैंसर देने वाली थी। अपनी इस स्थिति के बारे में और स्वयं तथा परिवार पर इसके प्रभाव के बारे में पूरी तरह जानना निश्चय ही जिम के लिए बेहद खौफनाक रहा होगा। ज्यादातर लोगों को न सिर्फ यह पूरा घटनाक्रम स्वीकारने में बल्कि इस दौर को सर्वोत्तम ढंग से जीने में बेहद मुश्किल आती है।

जिम को एहसास हुआ कि न केवल समुदाय में बल्कि चिकित्सा पेशे में भी उसकी दुर्लभ स्थिति के बारे में कम ज्ञान है, जिसके चलते उसे और इस स्थिति से ग्रस्त अन्य लोगों में जानकारी की कमी है और सही उपचार नहीं मिल रहा है।

फिर, उसने अपनी पत्नी मार्गरेट और कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर 1992 में गोर्लिन सिंड्रोम फाउंडेशन की स्थापना की। समय बीतने के साथ, इस ग्रुप से यूके के सैकड़ों परिवार जुड़ गए। इस ग्रुप ने यूएसए, नीदरलैंड और अन्य यूरोपीय देशों के मरीजों से संपर्क स्थापित किया और रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए दुनिया भर में वार्षिक सम्मेलन आयोजित करने में बड़ी भूमिका निभाई। ग्रुप ने रिसर्च को बढ़ावा देने और अपने सदस्यों के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध उपचारों के बारे में सलाह लेने के लिए चिकित्सा पेशेवरों के साथ मजबूत संबंध विकसित किए। जिम ने इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मीडिया को भी जोड़ा, इसी क्रम में बीबीसी पर प्रसारित डॉक्यूमेंट्री “बिटर इनहेरिटेंस” को काफी लोकप्रियता मिली।

मैं 2002 की गर्मियों में जिम से मिला था और कुछ महीनों के लिए उनकी देखभाल से जुड़ा था। उस समय तक जिम की आँखों ने देखना बंद कर दिया था। उनके चेहरे पर बहुत सारे छोटे-छोटे कैंसर थे जो आस-पास की संरचनाओं में फैल गए थे जिसके चलते सर्जन को उनकी एक आँख निकालनी पड़ी थी। उसके बाद, उनकी दूसरी आंख की नज़र भी कम हो गई थी और वे उससे मुश्किल से देख पाते थे। चेहरे पर रोग अभी भी बढ़ रहा था और आस-पास के क्षेत्रों को बहुत नुकसान पहुंचा रहा था, इस रोग की वजह से जिम का लगभग पूरा चेहरा बैंडेज से ढँक चुका था।

मैं उसे अच्छी तरह से जानने लगा था, और हम एक-दूसरे को अपने पहले नामों से बुलाते थे। वह वास्तव में बहुत ही प्यारा व्यक्ति था जिसके साथ बातचीत कर दिल को बहुत सुकून मिलता था। हालाँकि वह देख नहीं सकता था, लेकिन उसकी श्रवण शक्ति कमाल की थी। उसे मेरे कमरे में पहुँचने का अहसास हो जाता था, और मेरे कुछ बोलने से ही पहले ही “नमस्ते राज” कहकर मेरा अभिवादन करता था। अक्सर मेरे द्वारा हाल-चाल पूछने से पहले वही मेरा हालचाल पूछता था। मैं कई बार मज़ाक में उससे कहता कि यह काम मेरा है, उसका नहीं।

अपनी बीमारी और इसके परिणामों के बारे में पूरी जानकारी होने के बावजूद, जिम के साथ बातचीत, बिना किसी अपवाद के, हमेशा बेहद शांत और सुखद रहती थी। उसने शायद ही अपने लक्षणों के बारे में कोई शिकायत की, यहाँ तक कि जिम के लक्षणों को जानने के लिए हमें ही अपनी तरफ से कुछ जांच करने की जरूरत पड़ती थी। वह अक्सर ही इनकी अनदेखी करता था। वह अपनी समस्याओं के बारे में नहीं, बल्कि हमेशा हमारी बात सुनना चाहता था।

लगभग उसी समय, मैं अपने जीवन के एक कठिन दौर से गुज़र रहा था क्योंकि मेरे पिताजी में लिम्फोमा का दोहराव पाया गया। 1999 में उनका पहली बार इलाज हुआ था और हमें उम्मीद थी कि उनकी बीमारी कुछ समय तक वापस नहीं आएगी, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें उस साल अधिक उपचार की आवश्यकता थी। वे यूके आए और अपनी कीमोथेरपी के दौरान मेरे साथ रहे। यह हमेशा एक मुश्किल समय होता है जब आपके परिवार में किसी को कैंसर का इलाज होता है। कई बार मुझे खुद पर तरस आया। लेकिन जिम जैसे लोगों से मुझे अपनी स्थिति को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिली। जिम ने उदाहरण स्थापित किया कि सबसे खराब दौर में भी जीवन कैसे जीना है। जिम की कठिनाइयों के मुकाबले मेरी समस्या छोटी थी। मुझे उस समय इसका एहसास हुआ, और इससे मुझे काफी मदद मिली।

जिम का निधन उसी वर्ष के उत्तरार्ध में हो गया। उसका गोर्लिन सिंड्रोम समूह उसके परिवार, स्थानीय समुदाय और पेशेवरों की मदद से लोगों को निरंतर सहायता प्रदान कर रहा है। जिस तरह से उसने अपनी बीमारी और उसकी प्रतिकूलताओं का मुकाबला किया, वह मुझे और उससे मिले अनगिनत अन्य लोगों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।

जिम की कहानी हमें बताती है कि मुश्किलों के समय खुद को कैसे संभालें। मेरी दृष्टि में इसके लिए दो विकल्प हैं। पहला विकल्प है – सामने आई हुई बाधा देख कर भयभीत और व्याकुल हो जाना, इस स्थिति के लिए दूसरों को दोष देना, हिम्मत हार जाना और अंत की प्रतीक्षा करना। दूसरा विकल्प है – डर को दूर करने और काबू पाने का प्रयास करना, मन को शांत रखते हुए सकारात्मक सोचना, समस्या से निपटने के लिए रणनीति तैयार करना, दूसरों द्वारा प्रस्तुत सभी आवश्यक सहायता स्वीकार करना, इस स्थिति में सर्वोत्तम निर्णय लेने के लिए सभी यथोचित कार्रवाई करना। मुझे पता है कि मैं कौन सा विकल्प चुनूंगा। मैं आपसे भी वही करने की उम्मीद रखता हूँ।

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